झुंझुनू, श्रीमती सरती देवी शिवनारायण मान शिशु विहार सूरजगढ़ में वीर तेजाजी विकास संस्थान और जाट महासभा के अध्यक्ष जगदेव सिंह खरड़िया के नेतृत्व में दीनबंधु के नाम से विख्यात किसानों के मसीहा चौधरी सर छोटूराम और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी राजा नाहर सिंह की पुण्यतिथि मनाई। दोनों महापुरुषों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वक्ताओं ने उनके जीवन संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में बताया। आदर्श समाज समिति इंडिया के अध्यक्ष धर्मपाल गांधी ने सर छोटूराम के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा- सर छोटूराम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ तथा पत्रकार थे। ब्रिटिश शासनकाल में उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। सर छोटूराम को नैतिक साहस की मिसाल माना जाता है। सर छोटू राम ने किसानों के हक के लिए लड़ते हुए कहा था- “किसान को लोग अन्नदाता तो कहते हैं, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि वह अन्न खाता भी है या नहीं। जो कमाता है वही भूखा रहे यह दुनियां का सबसे बड़ा आश्चर्य है।” किसानों के रहबर, सर छोटू राम के इन चंद शब्दों ने इतिहास के पन्नों में किसानों को न केवल एक महत्वपूर्ण स्थान दिया बल्कि उनकी आवाज़ को बुलंदी भी दी। शायद उनकी इसी बुलंदी की वजह से आज भी सर छोटूराम को किसानों का मसीहा कहा जाता है। एक किसान का बेटा और देश के किसानों के हितों का रखवाला, जिसके लिए गरीब और जरुरतमन्द किसानों की भलाई हर एक राजनीति, धर्म और जात-पात से ऊपर थी; सर छोटू राम बस आम किसानों के थे।जितना मान उन्हें रोहतक में हिन्दू किसानों से मिला, उतनी ही इज्ज़त उन्हें लाहौर के मुसलमान किसानों ने बख़्शी। किसानों के हितों के लिए लिखे ‘ठग बाज़ार की सैर’ और ‘बेचारा किसान’ जैसे उनके कुल 17 लेख जाट गजट में छपे, जिन्होंने किसान उत्थान के दरवाजें खोले। पंजाब प्रांत के विकास और राजस्व मंत्री रहते हुए उन्होंने किसानों के हित में महत्वपूर्ण कानून पास करवाये। सर छोटूराम ने ऐसे कई समाज-सुधारक कानून पारित करवाए, जिससे किसानों को शोषण से मुक्ति मिली। इनमें शामिल हैं, पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस (1934), द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट (1936), साहूकार पंजीकरण एक्ट- 1938, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट-1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम -1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 और कर्जा माफी अधिनियम- 1934 कानून। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे। बल्लभगढ़ रियासत के राजा नाहर सिंह के बलिदान को याद करते हुए जगदेव सिंह खरड़िया ने कहा- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत साहस और वीरता का परिचय देने वाले बल्लभगढ़ रियासत के पराक्रमी और देशभक्त राजा नाहर सिंह ने अंग्रेजों को अपनी रियासत बल्लभगढ़ और दिल्ली में घुसने नहीं दिया। लंबे समय तक चली लड़ाई में अंग्रेज राजा नाहर सिंह को परास्त नहीं कर पाये। अंत में धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जनवरी 1958 को चाँदनी चौक दिल्ली में उन्हें फांसी दे दी गई। मातृभूमि की रक्षा में शहीद होने वाले पराक्रमी राजा नाहर सिंह को हम नमन करते हैं। इस मौके पर डॉ. एस.आर. प्रेमी, मोतीलाल डिग्रवाल, बाबूलाल मैनेजर, राजेश गोदारा, धर्मपाल गांधी, नरेंद्र मान, जगदेव सिंह खरड़िया, प्रदीप फोगाट, मानसिंह कुलहरी, श्रीराम ठोलिया आदि अन्य गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।