मेला जांट बाबा श्रीमाधोपुर
श्रीमाधोपुर (अमरचंद शर्मा) निकटवर्ती गांव कंचनपुर की ढाणी डांगीयोंवाली हमीरपुरा में स्थित मंदिर श्री जांट बाबा मेला परवान पर है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास व फाल्गुन महीने में भरने वाले मेले में दीपावली को श्रद्धालुओ ने जांट बाबा के मंदिर में शीश नवाकर अपने बच्चों की खुशहाली और परिवार की उन्नति की मन्नते मांगते है | मुख्य मेला दीपावली के पावन और पवित्र त्योहार पर आयोजित होता है जिसमें भक्त खेजड़ी के वृक्ष की पूजा करके मन्नत मांगते है।आस पास व दूरदराज के भक्त अपने नन्हे मुन्ने बालकों को लेकर शामिल होते हैं । मेले का मुख्य आकर्षक बच्चों के लिए झूले लगना, तथा अनेक खेल -खिलोने की रंग बिरंगी सजावटी दुकाने, स्वादिष्ट पकवानों के साथ मिठाई की दुकाने अपने आकर्षण के लिए खास है।मंदिर पुजारी भंवर लाल ने बताया की मेले में स्थानीय भक्तों के साथ ही नजदीकी राज्यों दिल्ली ,हरियाणा से भी भक्त मेले में पधारते है। मेले में काफी संख्या में महिलाएं व बच्चे भाग लेते है। कंचनपुर से जांट बाबा तक कच्चा रास्ता होने पर साधनों का जाम लग जाता है।
जांट बाबा के इतिहास की जानकारी
कंचनपुर गांव के लेखक ताराचंद मीणा ( चीता) ने बताया कि इस धार्मिक स्थान का बहुत बड़ा महत्व है , जनश्रुतियों के अनुसार यहां लगभग 800 वर्ष पहले उखल्डा नामक गाँव बसा हुआ था ।जो प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण आज अस्तित्व में नहीं है। जहां एक तपस्वी संत रहते थे उन्होंने अपने अन्तिम समय में समाधी ली थी, जिस स्थान पर संत ने समाधि ली वहां पर एक खेजड़ी का पौधा उग आया जो आज भी मंदिर के बाहर स्थित है। शिक्षाविद् ने बताया की इसी उखल्डा गाँव के मेड़तिया वंश के राजपूत के संतान प्राप्ति का सुख नहीं था , उसके पास रहने वाले सलाहकार व सेवक ने ठाकुर सहाब को बताया की ठाकूर सहाब यदि आप अपने गांव के पास स्थित बाबा की समाधि पर विनती कर शीश नवाते हैं तथा समाधी के परिक्रमा लगाकर संतान प्राप्ति की मन्नत मांगो तो जरूर अपने इस आंगन में खुशियां का अंबार लग सकता है। बताया जाता है की मेड़तिया राजपूत ने रोज बाबा की समाधि पर परिक्रमा का कार्यक्रम बनाया व अपने सेवक के साथ नित्यक्रम बना लिया कुछ समय उपरांत बाबा की कृपा से जागीरदार के पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ठाकुर के संतान उत्पत्ति को देख कर आसपास के लोगों में इस स्थान के प्रति आस्था बढ़ गई, और ठाकुर ने अपने सेवक को यहां पूजा पाठ के लिए नियुक्त कर दिया जो आज अनवरत जारी है। तथा उसी समय से यहां प्रतिवर्ष मेले का आयोजन होता आ रहा है। आज इस वृक्ष को जांट बाबा के नाम से पूजा जाता है पहले भक्त इस पेड़ की जड़ों के नीचे से निकल कर अपने जात जूडले उतारते थे परन्तु वहां आज भक्तों द्वारा मंदिर बनाने पर उसके चारों तरफ फेरी लगाकर मनोकामना पूर्ण करते हैं।