तापमान बढ़ते ही बढ़ी पेयजल की मांग
झुंझुनूं , जिले में तापमान बढ़ते ही गांव-गांव में पेयजल की मांग बढ़ गई है। भूमिगत जल नीचा चले जाने तथा नहरी पानी की आपूर्ति सुचारू नही होने के कारण पेयजल के लिये गांव ढाणियों में त्राहिमाम मचा हुआ है। इसके ऊपर प्रभाव शाली लोगों द्वारा मोटे पाइप तथा बूस्टर लगाकर टेल पर बसे लोगों को पेयजल से महरूम करने के प्रयासों ने इस व्यवस्था में कोढ़ पर खाज का काम किया है। जिले के बुहाना तथा सूरजगढ़ ब्लॉक में भूजल लगातार नीचा जाने के कारण विभाग के परम्परागत जलस्रोत रहे नलकूपों की बार-बार मोटर जलने की शिकायतें आ रही हैं। जलदाय विभाग ने बजट का बहाना बनाकर समस्या से मुंह मोड़ लिया है, जबकि राज्य सरकार ने समर कंटीजेंसी के लिये 50 लाख का बजट आवंटित कर रखा है। जलदाय विभाग का कहना है कि ऐसे परम्परागत जलस्रोतों की मरम्मत ग्राम पंचायतों द्वारा की जाती रही है, अतः आगे भी यह खर्चा पंचायतें ही वहन करेगी। ग्राम पंचायतों की और से जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रामनिवास जाट का कहना है कि जब टी एस एस कुओं का बिजली बिल जलदाय विभाग भरता है तो समस्त रख रखाव भी जलदाय विभाग ही करें। राज्य सरकार ने केवल जनता जल योजनाओं के संधारण का दायित्व ग्राम पंचायतों को दिया है, जिसका निर्वहन पंचायती राज संस्थाओं द्वारा भलीभांति किया जा रहा है। इसके बाद भी यदि जलदाय विभाग के पास समय विशेष के लिए बजट नही होने की स्थिति में जलदाय विभाग के तकमीने के आधार पर तात्कालिक उपाय के तौर पर कोई पंचायत साल में एक दो बार किसी जलस्रोत को ठीक करवा सकती हैं। जलदाय विभाग द्वारा इस कार्य के लिये पूरी तरह से ग्राम पंचायतों पर जिम्मेदारी डालना विभागीय जिम्मेदारी से बचने जैसा कार्य है। उल्लेखनीय हैं कि जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में जलदाय विभाग द्वारा 4 हजार पांच सौ हैंडपंप, प्रतिवर्ष 50 से अधिक नये नलकूप की दर से अब तक 3 हजार से अधिक नलकूप खुदवाने, परम्परागत जलस्रोतों के रूप में चिन्हित करीब एक हजार खुले कुओं से जलदोहन करने तथा कुम्भाराम लिफ्ट नहर से झुंझुनूं, अलसीसर तथा खेतड़ी ब्लॉक में हर घर को पानी उपलब्ध करवाने का दावा किया जा रहा है। इसके बावजूद जलसंकट के निवारण की जिम्मेदारी सीमित संसाधनों वाली ग्राम पंचायतों पर डालना कहां तक उचित है।