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भामाशाह सहयोग करें तो जर्जर हो रहें विद्यालय का हो सकता है नवनिर्माण

85 साल पुराने जर्जर भवन में चलती हैं आठ कक्षाएं

दांतारामगढ़, [लिखा सिंह सैनी ] नृसिंहदास हीरालाल बाइस्या द्वारा निर्मित भवन जो की सन् 1935 में पुख्ता निर्मित आठ कमरों व बरामदों सहित इस विद्यालय को प्रदान किया गया था, जहां  वर्णाकुलम विद्यालय संचालित किया गया। बाईस्या परिवार द्वारा प्रदत्त भवन शिक्षा के क्षेत्र में शुरू की गई एक अनूठी पहल थी जो एक शैक्षणिक क्रांति साबित हुई। इस भवन के जर्जर अवस्था में पहुंच जाने पर इस भवन में विकास का पहिया थम गया व यह सरस्वती का मंदिर जहां बैठकर सैकड़ों विद्यार्थी अपने गुरुजनों के मार्गदर्शन में अपने भविष्य को सुधारने व संवारने को तत्पर रहते थे, जर्जर अवस्था में अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा था। भामाशाहों की बाट जोते- जोते इस भवन में  एक से आठवीं तक कक्षाएं चलती आ रही है पुराना भवन होने से हमेशा  कोफ रहता है । सन् 1951 में विद्यालय दसवीं तक क्रमोन्नत हुआ तो दांता के ही नौकरी ब्रदर्स हरिनारायण खेतान परिवार द्वारा इसी भवन के दक्षिण दिशा में हॉल व बरामदों सहित नया भवन बनाकर इस विद्यालय को सौंप दिया गया जिसमें नवमी व दशवी की कक्षाएं संचालित हो रही थी। समय – समय पर विद्यालय में विस्तार योजनाओं के तहत भामाशाहों द्वारा प्रयोगशालाओं व नये कमरों का निर्माण हुआ वह भी दक्षिण दिशा के नये भवन में ही हुआ। इस विद्यालय के विकास में भामाशाहों का शुरू से ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चित्तावत परिवार व कानोड़िया परिवार कलकत्ता द्वारा प्रयोगशालाओं का निर्माण करवाया गया तथा भैरवदत्त भवानिशंकर खेतान परिवार द्वारा प्रशासन कक्ष , प्राचार्य कक्ष के साथ ही दरवाजे का निर्माण व जलमंदिर का निर्माण करवाया गया। कुमावत परिवार द्वारा एक कक्ष का निर्माण व हनुमान प्रसाद वेद परिवार द्वारा स्टेज का निर्माण करवाया गया। समय – समय पर मरम्मत कार्य व विस्तार योजनाओं के लिए इसी विद्यालय के पूर्व छात्रों निर्मल झाझरी, बाबूलाल मित्तल व वर्तमान में बनवारी मित्तल सी. ए. का भी अच्छा योगदान रहा है। विद्यालय में ठा. राजेन्द्र सिंह दांता के प्रयासों से बॉथरूम का निर्माण हुआ व भूतपूर्व सरपंच हरेक चन्द जैन के प्रयासों से भीवराज बद्री नारायण खेतान परिवार द्वारा प्रदत्त  खेल के मैदान में स्टेडियम के निर्माण का कार्य शुरू हुआ जो अभी तक पुरा नहीं हुआ। हर प्राचार्य ने अपने कार्यकाल में कुछ ना कुछ निर्माण व विकास कार्य करवाया। लेकिन उपेक्षित जर्जर भवन को जस का तस ही रखा ना तो किसी भामाशाह का ध्यान इस भवन पर गया व ना ही किसी ने अन्य प्रयास किया। जिस भवन कि नींव रख कर उच्च शिक्षा की अलख जगाई गई वह भवन सालों से उपेक्षित रहा। वर्तमान प्राचार्य सुरेश  वर्मा के प्रवक्ता अंग्रेजी के व्याख्याता महावीर प्रसाद सुरोंडिया ने बताया की समसा (पूर्व में रमसा) योजना के तहत 37 लाख रुपयों की लागत से पुराने भवन के स्थान पर पांच प्रकोष्ठ बनाने की योजना है जिसके लिए भवन के दानदाताओं से संपर्क करके पुराने जर्जर भवन को गिरा कर नवनिर्माण की इजाजत ली जानी है। विद्यालय के पूर्व छात्र कलकत्ता प्रवासी बनवारी मित्तल ने भी 11 लाख रुपए देकर अपने स्वर्गीय पिताजी की यादगार में कम्प्यूटर लैब बनवा रहे है। मित्तल जैसे युवा प्रवासी व गांव के  भामाशाहों के सहयोग से व सरकार के सहयोग से निर्माण कार्य करवाया जा सकता है। विद्यालय विकास समिति व नव निर्माण कमेटी द्वारा किसी आर्किटेक्चर से नक्शा बनवा कर भविष्य की विस्तार योजनाओं के अनुरूप निर्माण करवाया जाना चाहिए।  अच्छा तो यह रहेगा की दोनों भवनों का लेवल एक ही करके व भराव करके ही निर्माण कार्य किया जाए। पूर्व विद्यार्थी  नंदू .आर.खेतान बताते है की  85 वर्ष पूर्व बनी पुख्ता बिल्डिंग को यूं ही नहीं धराशाही  किया जाये ।  धराशाही करने की इजाजत तो दानदाताओं से मिल जाएगी लेकिन उनके स्थान पर प्रस्तावित निर्माण कार्य शुरू करने से पूर्व सभी तकनीकी क्रियाएं पूरी की जाए। उत्तर दिशा का मुख्य द्वार भी फिर से शुरू हो व स्काउट रूम व खेल कूद स्टोर को भी उचित स्थान प्रदान करें। आजादी से पूर्व का ऐतिहासिक बांडयिवास का विद्यालय शिक्षा जगत में शिक्षा मजबूत नींव की मिशाल के रूप में साबित हुआ। सन् 2015 -16 सत्र में  भामाशाहों को जोड़ने के लिए सखा संगम जैसे अनुठा कार्यक्रम आयोजित किया ,जिस कारण विद्यालय की भौतिक सुविधाओं के साथ चहुंमुखी विकास किया। समस्त स्टाफ की में मेहनत और भामाशाहों के सहयोग से लगातार 4 वर्षों से बोर्ड का शानदार परिणाम देकर विद्यालय को जीरो से हीरो बनाकर पूर्व का ऐतिहासिक गौरव लौटाने में कामयाबी हासिल की। मां शारदै की प्रार्थना व सांस्कृतिक कार्यक्रम राज्य स्तरीय पर पहचान बनाई।साँस्कृतिक प्रभारी पूरण मल जोरम के निर्देशन में मय साज बाज प्रार्थना सभा की वंदना सोशियल मिडिया पर लाखों  लोग देख चुके । भामाशाह सहयोग करें तो 85 साल पुरानें बांडियावास विद्यालय भवन का नवनिर्माण हो सकता है।

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