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योजना में मिले ऋण और सब्सिडी ने बदली ने दिव्यांग नोपदान की तकदीर
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चूरू, व्यक्ति में कुछ कर गुजरने की ललक हो और इच्छाशक्ति मजबूत हो तो फिर कोई भी कमजोरी उसकी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती है। ऎसे लोगों तक जाकर सरकार की कल्याणकारी योजनाएं किस तरह एक बड़े बदलाव का वाहक बन जाती हैं, सरदारशहर के दिव्यांग नोपदान चारण की कहानी इसका बेहतरीन उदाहरण है। यह भी हो सकता था कि वह अपनी लाचारी और कमजोरी का बहाना बनाकर किसी पर निर्भर रहते हुए जिंदगी बसर कर लेता लेकिन नोपदान के जमीर को यह गवारा न था। संघर्ष से सफलता की इस राह में उसके लिए रोशनी का दीया बनी राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना। बेरोजगारी के किसी वक्त में दर-दर भटकने वाले उपेक्षा के शिकार दिव्यांग नोपदान चारण को इस योजना के माध्यम से मिले चार लाख रुपए के बैंक ऋण एव 50 हजार रुपए की सब्सिडी ने उसकी जिंदगी बदल दी और आज वह 25 से 30 हजार रुपए घर बैठे आराम से कमा रहा है। बेरोजगारी और खस्ताहाली के दौर से लेकर सफलता के इस सफर के बारे में नोपदान चारण ने बताया हम दो भाई हैं एक भाई अलग रहता है जिसके चलते मां-बाप की सारी जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। वर्ष 2013 में मेरी परिस्थिति बहुत दयनीय थी तथा घर में दो वक्त की रोटी का भी संकट था। जब मुझे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के बारे में पता चला तो मैंने चूरू जिला मुख्यालय पर जाकर विभाग में संपर्क किया तथा आवेदन भरा। विभाग के सहयोग एवं सहायक निदेशक नरेश बारोठिया के सकारात्मक रवैये से मुझे चार लाख रुपए का लोन मिला। जिसमें 50 हजार रुपए की सब्सिडी भी शामिल थी ऋण लेकर मैंने किराने की दुकान खोली और उसमें पूरा ध्यान लगाया। दुकान में फायदा हुआ और धीरे-धीरे और भी बेचे जाने वाली वस्तुओं की संख्या बढ़ती गई। यह ऋण मेरे जीवन में संजीवनी साबित हुआ और आज मैं इस काम से 25 से 30 हजार रुपए प्रतिमाह कमा रहा हूं। परचूनी के सामान से व्यवसाय शुरू करने वाला नोपदान अब अपने ग्राहकों को ई-मित्र समेत दूसरी कई प्रकार की सेवाएं दे रहा है। एक स्वाभिमान से भरी जिंदगी जी रहा है। उसका कहना है कि राज्य सरकार की यह योजना उसकी जिंदगी में बदलाव का वाहक बनी है तथा दूसरे लोग भी यदि ऋण और अनुदान को तात्कालिक सहायता नहीं समझकर उसका वास्तविक लाभ उठाएं, मन लगाकर काम करें तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं और उनका जीवन संवर सकता है।