श्रावण पूर्णिमा, रक्षा बंधन और स्वतंत्रता दिवस के त्रिवेणी संगम पर लेख
सीकर, विमला महरिया “मौज”(शिक्षिका, साहित्यकार,समाजशास्त्री), इस बार श्रावण पूर्णिमा के दिन हमारी सांस्कृतिक विरासत रक्षा बंधन और राष्ट्रीय विरासत स्वतंत्रता दिवस का अदभुत संगम है। संपूर्ण प्रकृति सावन में श्रृंगार कर, हरियाली पोशाक धारण करके सुख और समृद्धि की अलख जगाती है। हरे-भरे खेत खलिहान एक नूतन ऊर्जा का संचार करते हैं और मानव मन को खुशियों की सौगात स्वरूप पुलकित,हुलसित सुरम्य वातावरण का उपहार देकर,नूतनता की ओर प्रेरित करते हैं। एक तरफ आजादी के 73 साल बाद, पहली बार पूरे भारत वर्ष में कश्मीर से कन्याकुमारी तक तिरंगा लहराएगा और दूसरी तरफ चारों ओर राखी की धूम रहेगी। बहनें, भाइयों के लिए रंग-बिरंगे रेशमी धागों से बनी राखियां लाए जा रही हैं और भाइयों के स्वास्थ्य, सौभाग्य और लंबी आयु की कामना कर रही हैं। अनौखा है अपने आप में राखी का त्योहार प्यार की अटूट डोर से बंधे रिश्ते इस दिन सभी गिले-शिकवे भुलाकर नईं शुरुआत करने को आतुर रहते हैं। दूर-दराज के क्षेत्रों में बसी बहनें, अपने भाइयों के लिए राखी बांधने स्वयं लंबी यात्रा करके पीहर आती हैं अथवा बहुत मन्नतों के साथ डाक द्वारा भिजवाना त्योहार के बहुत पहले ही तय कर लेती हैं ताकि नियत समय पर प्यार और विश्वास का बंधन,भाई की कलाई पर बंध जाए और वह हर प्रकार की बला से सुरक्षित रहे। बहुत ही सुखद अनुभूति होती है बाजारों की रौनक और बहनों की तत्परता देखकर कि इस भौतिकवादी और तकनीकी युग में भी बहन-भाई का रिश्ता दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ ही हो रहा है। हमारी सनातन संस्कृति का हिस्सा यह त्योहार आज भी उतनी ही धूमधाम और हर्सोल्लास से मनाया जाता है।
इस भोगवादी युग में रक्षा बंधन का महत्व और बढ़ जाता है जब चारों ओर बेटियों पर अनेकों अत्याचार यथा घरेलू हिंसा, असमानता, छेड़छाड़, बलात्कार, हत्या,कन्या भ्रूण हत्या और अन्य-अनेक आक्षेप लगाए जाते हैं तो संपूर्ण मानव समाज को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है और मानवीय मूल्यों पर प्रश्र चिन्ह खड़े होते हैं मगर बहन-बेटियों का प्रिय यह त्योहार समाज में निरंतर यह संदेश देता है कि बहन-बेटियां सम्मान की पात्र हैं क्योंकि संपूर्ण मानव जाति के कल्याण की कामना सदैव करती रहती हैं।बहन की शुभकामनाओं से भाइयों के सभी संकट टल जाते हैं और भाई सदैव उन्नति की राह बढ़ते हैं। संभवतः यह त्योहार किसी भी अपराधी का हृदय परिवर्तन कर सकता है। जब किसी के यह समझ में आता है कि स्त्री सिर्फ स्त्री और भोग की वस्तु ही नहीं है बल्कि उसके अनेक रूप हैं और प्रत्येक रूप में स्त्री कल्याणी है। इस तरह के अनूठे त्योहार से सामाजिक सौहार्द की भावना का विकास भी होता है जब दो विपरीत जाति और धर्म के बहन-भाई अपने स्नेह का आदान-प्रदान करते हैं। भाई-बहन के जैसा पवित्र और अनमोल रिश्ता संसार में दूसरा नहीं है। इस अतुलनीय स्नेह का प्रसार,समस्त विश्व समुदाय के लिए कल्याणकारी है।