प्रशासनिक खर्चा 4 प्रतिशत से बढ़कर हुआ 22 प्रतिशत
झुंझुनू, पांच साल पहले राज्य सरकार ने महात्मा गांधी नरेगा योजना का सफल संचालन के लिये प्रत्येक ग्राम पंचायत में केवल इसी काम के लिये एक कनिष्ठ सहायक का पद स्वीकृत कर सभी पद भर दिये गए थे। कनिष्ठ सहायक द्वितीय के नाम से पदस्थापित इन कर्मचारियों द्वारा प्रत्येक साल में श्रमिकों द्वारा रोजगार मांगे जाने का अनुमान तैयार किया जाकर उसी के अनुसार कामो के प्रस्ताव तैयार करने, वार्षिक कार्ययोजना बनाने, जॉब कार्ड जारी करने, श्रमिकों से आवेदन लेकर काम पर लगाने, समय पर भुगतान करना आदि कामों का अंजाम देना था। नरेगा में साल भर में पंचायत द्वारा किये गए खर्चे का 4 प्रतिशत की सीमा तक इनके वेतन, भत्तों पर खर्च होना था। प्रशासनिक खर्च की सीमा को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्रतिदिन औसत 100 श्रमिकों का नियोजन का लक्ष्य जिला स्तर से दिये गए थे, जबकि गत वर्ष पूरे जिले में औसत प्रतिदिन 28 श्रमिकों को ही काम दिया जा सका।इसके चलते प्रशासनिक खर्चा निर्धारित 4 प्रतिशत से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गया। 1 अप्रैल से शुरू हुए वितीय वर्ष के लिये जिला परिषद के सीईओ रामनिवास जाट द्वारा जिले की ग्राम पंचायतों में तैनात 300 सहायकों को टास्क दिया गया है कि औसत प्रतिदिन प्रति पंचायत 100 श्रमिकों का नियोजन करें, उक्त संख्या में श्रमिक नियोजन नही होने पर उनके वेतन भत्तों का नियमित भुगतान संभव नही होगा तथा आधे पदों को समर्पित करना होगा। जिला स्तर से जारी चेतावनी के बाद मई के द्वितीय पखवाड़े में औसत प्रति पंचायत 70 श्रमिक नियोजित किये जा सके हैं। सीईओ ने 20 मई तक 100 श्रमिको के नियोजन का लक्ष्य पूरा नही करने वाले सहायकों को जिला परिषद में बुलाने की चेतावनी दी है। इसके बाद कर्मचारियों ने प्रत्येक जॉबकार्ड धारक परिवार से संपर्क करना शुरू कर दिया है, ताकि उन्हें जगह नहीं छोड़नी पड़े।