चिकित्सालेखसीकर

पशुपालन विशेष -कृत्रिम गर्भाधान द्वारा नस्ल सुधार से अधिक दुग्ध उत्पादन

डॉ नरेश मिठारवाल ,नीम का थाना [सीकर]
अधिक मात्रा में दुग्ध उत्पादन प्राप्त करने हेतु मुख्य कारको में अच्छी नस्ल का पशु, संतुलित आहार का प्रयोग, उत्तम पशु प्रबंधन शामिल है | इनमें प्रथम आवश्यकता उत्तम नस्ल के पशु की है| कृत्रिम गर्भाधान नस्ल सुधार का वैज्ञानिक तरीका है जिससे प्रभावी तरीके से श्रेष्ठ नस्ल के पशु पैदा किये जाते है| जिनसे अधिक दुग्ध उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है|  इसके लिए सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ नस्ल के नर पशु का चयन किया जाता है फिर इस नर पशु से प्राप्त उच्चतम गुणवत्ता के वीर्य को वैज्ञानिक तकनीक के प्रयोग से संरक्षित कर सही समय पर मादा पशु में निषेचित किया जाता है| अगर अच्छे नस्ल के नर पशु का समागम उच्चतर वंशावली वाली मादा पशु से करवाया जाता है तो उनकी संतान आनुवंशिक रूप से उत्तम होती है|

कृत्रिम गर्भाधान की आवश्यकता:-

प्राकृतिक संसर्ग की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान के निम्न लाभ है-

देशभर में पशुधन की एक बड़ी संख्या गैर नस्ल के पशुओ की है इस नस्ल की मादा पशुओ को अगर श्रेष्ठ नस्ल के नर पशु के वीर्य से निषेचित करवाया जाये तो संतान अच्छे लक्षणों वाली होगी|

कृत्रिम गर्भाधान के लिए नर पशु का चयन उसकी वंशावली की पूर्ण समीक्षा कर की जाती है जबकि प्राकृतिक संसर्ग में कोई भी नर चाहे वो निम्नतर नस्ल का हो समागम कर जाता है|

देशी नस्ले बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती है परन्तु दुग्ध उत्पादन कम देती है ऐसे में अगर विदेशी नस्ल के अधिक दुग्ध उत्पादन वाले नस्लों के नर से क्रॉस करवाया जाये तो उत्पन्न संतति संकरण ओज के कारण उन्नत लक्षणों वाली होती है|

कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा शारीरिक रूप से असक्षम परन्तु अच्छी नस्ल के नर पशु का वीर्य उपयोग में लिया जा सकता है|

सामान्य तौर पर उपलब्ध नर पशुओ में अगर कोई रोग जैसे ब्रुसोलेसिस इत्यादि होता है तो वो भी मादा पशु में आ जाता है|

नर एवं मादा पशुओ की शारीरिक ऊंचाई के अनुपात में अधिक अंतर होने पर प्राकृतिक संसर्ग संभव नहीं होने की दशा में कृत्रिम गर्भाधान अधिक प्रभावी सिद्ध होता है|

इकोनॉमिक्स के हिसाब से भी कृत्रिम गर्भादान अधिक सरल और सस्ता होता है|

कृत्रिम गर्भाधान में सम्पूर्ण रिकॉर्ड संरक्षित रखा जाता है अतः भविष्य में इस वंशावली रिकॉर्ड का उपयोग किया जा सकता है|

कृत्रिम गर्भाधान में ध्यान रखने योग्य बिंदु:-

देशी नस्ल के पशुओ के संरक्षण के लिए आवश्यक है कि इन्ही नस्लों की सर्वश्रेष्ठ वंशावली वाले नर पशुओ का वीर्य काम में लिया जाये|

गैर नस्लों में आनुवंशिक तौर पर रोगप्रतिरोधकता पायी जाती है| इनके उत्पादन को बढ़ाने के लिए लिए, गैर नस्लों का विदेशी नस्ल से संकरण अच्छा माध्यम है, परन्तु संकरण में भी हाफ ब्लड से अधिक विदेशी नस्ल के जीन होने पर, संतति को वातावरण से अनुकूलित होने में समस्या आती है|

तकनीकी स्टाफ व विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है, अन्यथा प्रयोगशाला जांच में त्रुटि आ सकती है|

नर पशु का उपयुक्त स्वास्थ्य परिक्षण नहीं होने अथवा वीर्य की जाँच मानक विधि से नहीं होने की दशा में बीमारियां आगे स्थानांतरित हो सकती है|

वीर्य का भण्डारण उपयुक्त तापमान पर नहीं किये जाने पर, वीर्य में शुक्राणु के जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है|

कृत्रिम गर्भधान में सही समय पर ही वीर्य, मादा के सर्विक्स में छोड़ा जाना चाहिए| कृत्रिम गर्भधान करने से पहले, मादा पशु के ताव में आने के लक्षणों का पूर्ण सत्यापन आवश्यक है, अन्यथा शुक्राणु और अंडाणु के मिलने पर होने वाले निषेचन की सम्भावना कम होती जाती है|

कृत्रिम गर्भधान प्रशिक्षित स्टॉफ द्वारा नहीं किये जाने पर, मादा पशु के गर्भित होने की संभावना कम हो जाती है|

कृत्रिम गर्भाधान करने की विधि:-

वंशावली के आधार पर उत्तम नस्ल के नर पशु का वीर्य लेकर उसकी प्रयोगशाला जाँच की जाती है| प्रयोगशाला जाँच में सही परिणाम आने पर वीर्य को छोटी छोटी इकाइयां जैसे मिनी स्ट्रॉ इत्यादि के रूप में पैकिंग की जाती है, तत्पश्चात तरल नाइट्रोजन में संरक्षित किया जाता है| मादा पशु के ताव में आने पर सही समय पर जैसे गाय अगर सुबह ताव में आयी है तो शाम को और अगर शाम को ताव में आती है तो सुबह के समय, वीर्य की थाविंग करके मादा पशु की सर्विक्स में वीर्य छोड़ दिया जाता है| सारी प्रक्रिया में ध्यान रखने बिंदु यह है कि नर पशु रोगरहित हो तथा कृत्रिम गर्भादान में प्रयुक्त यन्त्र जीवाणु रहित हो| ये सारा काम अनुभवी वेटरनरी डॉक्टर द्वारा अथवा उसकी देखरख में वेटरनरी कम्पाउंडर द्वारा किया जाना चाहिए |इस प्रकार कृत्रिम गर्भाधान से उत्पन्न संतति को संतुलित आहार देकर उचित पशु प्रबंधन द्वारा अधिक दुग्ध उत्पादन प्राप्त कर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है|

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