भाजपा- खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना
चौबे जी बनने चले थे छब्बेजी, बन गए दुबे जी
झुंझुनू, प्रदेश में 1 महीने से चल रहा सियासी संकट अब पटाक्षेप की तरफ दिखाई पड़ रहा है ।जिस तरह से सचिन पायलट आक्रमक मोड में थे वह अचानक से बैकफुट पर आ गए । पूरे घटनाक्रम में लगता है कि गहलोत की आगे पायलट बच्चा साबित हुए हैं, और राजनीति में पायलट गच्चा खा गए । हालांकि पर्दे के पीछे रविवार से ही कार्रवाई शुरू हो चुकी थी । लेकिन सोमवार शाम को विधायक भंवरलाल शर्मा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की ।राजनीति में अपनी बात की कोई कीमत नहीं होती यह साबित हो गया । भंवर लाल शर्मा ने मुलाकात के बाद बाहर आते हुए मीडिया को बताया कि मेरी नाराजगी मुख्यमंत्री से नहीं थी मेरी नाराजगी क्षेत्र में धीमी गति से हो रहे विकास कार्यों को लेकर थी जो अब दूर हो चुकी है । वही एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा भैरौ सिंह शेखावत ने राजाखेड़ा की टिकट को लेकर उस समय मुझसे झूठ बोला था जिसका मैंने बदला लिया था। वही सचिन पायलट अपना महत्वाकांक्षाओं का विमान लेकर मानेसर मे लैंड कर गए थे । कल सोमवार को राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के बाद पायलट ने विमान में दिल्ली से इंधन भरवा कर आज जयपुर लौट आएंगे । इनके साथ ही इनके बागी विधायक भी सड़क मार्ग से जयपुर लौटेंगे । इस घटनाक्रम में देखें तो अशोक गहलोत का एक बयान सामने आया था कि राजनीति में रगड़ा खाना जरूरी होता है इसमें पायलट ने जो गच्चा खाया है वह उनकी राजनीतिक परिपक्वता में कमी को दर्शाता है । जिसके चलते ही उनके साथ जो पहले लोग थे उन्होंने पायलट का साथ छोड़ा और धीरे-धीरे मानेसर कैंप में डटे हुए तीन चार विधायक भी अशोक गहलोत खेमे के संपर्क में आ गए। लिहाजा ऐसी स्थिति में अपनी राजनैतिक कैरियर को देखते हुए उन्हें बैकफुट पर जाना पड़ा । साथ ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और उनके ससुर फारुख अब्दुल्ला ने भी कांग्रेस आलाकमान को पायलट से बात करने के लिए राजी किया । वहीं कांग्रेस आलाकमान ने सचिन पायलट समेत सभी विधायकों की बिना शर्त वापसी की है जिसमें उनकी मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत को हटाने की मांग को पूरी तरीके से खारिज कर दिया गया है, और इस मामले की जांच के लिए कमेटी बनाई गई है । वहीं भारतीय जनता पार्टी जोकि कुलिनो का कुनबा कहा जाता है इस पूरे सियासी घटनाक्रम में उसकी फूट भी उजागर हो गई । उसके नेता भी मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर अलग-अलग बटे हुए दिखाई दिए। वसुंधरा राजे का दिल्ली जाना और बड़े पार्टी नेताओं से बातचीत करना और आरएलपी के हनुमान बेनीवाल को लेकर स्पष्ट तरीके से अपनी राय व्यक्त करना। भाजपा के हाईकमान को सोचने पर मजबूर कर दिया। भाजपा आलाकमान को भी महसूस हो गया कि कांग्रेस का ही कांच का घर नहीं है, भाजपा का भी कांच का ही घर है । दूसरे के घर की फूट का फायदा उठाने की नियत कहीं अपने घर में ही दरार पैदा ना कर दे । वहीं भाजपा जो कांग्रेस विधायकों की बाडेबंदी को लेकर सवाल खड़ा कर रही थी उन्होंने अपने भाजपा विधायकों को कथित सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए गुजरात भेज दिया। जिसकी सरकार हो उसको विधायकों को तो बड़ाबंदी करने की बात समझ में आती है लेकिन शायद राजनीति में ऐसा पहली बार देखा गया कि विपक्षी पार्टी को भी अपने विधायकों की बाडेबंदी करनी पड़ी । जैसे-जैसे घटनाक्रम घटित होता जा रहा है सचिन पायलट और भाजपा के भी भविष्य में विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल खड़ा हो गया है। वही संपूर्ण मामले में देखें तो अशोक गहलोत की राजनीतिक सूझबूझ और अनुभव ने एक बार फिर रंग दिखा दिया। वहीं सचिन पायलट कि इस मामले में राजनीतिक अनुभव हीनता भी सामने आई । क्योंकि उनके साथ के जो विधायक थे उन्होंने भी भाजपा में जाने से इंकार कर दिया ।उन्हें डर था कि यदि वह ऐसा करते हैं तो आगामी चुनाव में उनके लिए विधायक बनना भी दूर की कौड़ी साबित हो जाएगा । प्रदेश में पिछले 1 महीने में जो सियासी ड्रामा देखा है वह सिर्फ अपने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति को लेकर ही था । इसमें दोनों दलो के राजनेताओं की पोल खुलती नजर आ रही है ।