गांव से लेकर जिला स्तर के कुछ अधिकारियों ने अपनी मर्जी से
झुंझुनूं, सरकारी विभागों के गांव से लेकर जिला स्तर के कुछ अधिकारियों ने अपनी मर्जी से ही कुछ कानून बना रखे हैं, जो आम लोगों को परेशान करने के लिये है। इसकी एक बानगी यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के नामान्तरकरण के मामलों में पटवारी तथा तहसीलदार ग्राम पंचायत द्वारा जारी वारिस प्रमाण पत्र लाने के लिये मृतक के वारिसों को बाध्य करते हैं, जबकि ग्राम पंचायत के सरपंच या सचिव ऐसा कोई प्रमाण पत्र जारी करने के लिये अधिकृत ही नही है। कानूनन उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने के लिये केवल सिविल कोर्ट ही सक्षम है। कुछ पूर्व सरपंचों ने ग्राम पंचायत के स्तर से पहले इस प्रकार के प्रमाण पत्र जारी कर दिये थे, जिसे राजस्व अधिकारियों ने अपने बचाव के लिये एक परम्परा बना दी। इसी तरह बिजली व पानी के कनेक्शन लेने हेतु प्रस्तुत होने वाले आवेदनों पर भी इन विभागों के अधिकारी भूमि के स्वामित्व का प्रमाण पत्र मांग रहे हैं, जबकि मालिकाना हक का प्रमाण केवल पट्टा ही है। जिले के कुछ पूर्व सरपंचों ने ऐसे प्रमाण पत्र जारी कर दिये थे, जिन पर विभागीय जांच चल रही है। जिले में 287 ग्राम पंचायतों में ग्राम विकास अधिकारी ही प्रशासक होने के कारण ये कर्मचारी ऐसे कोई प्रमाण पत्र जारी नही कर रहे हैं। जबकि राजस्व, बिजली, पानी, आदि विभागों के अधिकारी आवेदकों को ग्राम पंचायतों में भिजवा देते हैं। इस सम्बंध में जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रामनिवास जाट ने एक आदेश जारी कर सभी सरपंचों तथा ग्राम विकास अधिकारियों को ऐसे प्रमाण पत्र जारी करना उनके क्षेत्राधिकार में नही होने के कारण पाबन्द किया है। जिला कलेक्टर द्वारा भी सम्बंधित विभागों को ऐसे मामले में आम जनता को अनावश्यक परेशान न करने के निर्देश समय समय पर दिये गये है । फिर भी ग्राम स्तरीय अधिकारी लकीर पीटकर जनता को परेशान करने से बाज नही आ रहे है।