परिवार के चार सदस्यों को श्रीमद्भगवद्गीता कंठस्थ है
दांतारामगढ़ (लिखासिंह सैनी) अंतर्राष्ट्रीय गीता प्रचारक लोकतंत्र सेनानी दीप चंद्र शर्मा का जन्म 10 अगस्त 1953 में कन्हैयालाल जोशी के घर माता रुक्मिणी देवी की कोख से दांतारामगढ़ में अत्यंत धर्म परायण परिवार में हुआ। शर्मा ने कक्षा 7 तक शिक्षा दांतारामगढ़ में प्राप्त की एवं उसके बाद संस्कृत शिक्षा के लिए मारवाड़ मूंडवा में गए उपाध्याय तक वहां अध्ययन किया। तत्पश्चात ऋषि कुल लक्ष्मणगढ़ व जयपुर से शास्त्री आचार्य की परीक्षा पास कर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली से मान्यता प्राप्त संस्कृत महाविद्यालय जयपुर से शिक्षा शास्त्री से बी एड की ओर उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुषांगिक संस्था विद्या भारती के विद्यालयों में 10 वर्ष तक अध्यापक एवं प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। तत्पश्चात फरवरी 1982 से राजकीय विद्यालय दुधवा में अध्यापक के रूप में राजकीय सेवा में प्रवेश किया। कर्तव्य का पालन करना ही भगवान की पूजा है ,श्रीमद्भगवद्गीता के इस उच्च आदर्श को इन्होंने अपने जीवन में अपनाया और शिष्य देवो भव की भावना से शिष्यों को भगवान का रूप मानकर के ही अपने कर्तव्य का निर्वहन किया । शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को देश भक्ति और सामाजिक कार्यों से जोड़ने के लिए स्काउटिंग आदि संस्थाओं से जुड़े अनेक बच्चों को राष्ट्रपति स्काउट और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय जमबूरियों में सम्मान दिलवाया । सन् 2007 में राजकीय सीनियर माध्यमिक विद्यालय रेवासा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। सीकर जिले में कई दशकों से किसी भी निजी विद्यालय को माध्यमिक स्तर की मान्यता नहीं मिली थी उस समय सन् 1984 में इन्होंने श्रीराम शिक्षा मंदिर नाम से विद्यालय प्रारंभ करके उसको माध्यमिक स्तर तक की मान्यता दिलवाई और बोर्ड का शत-प्रतिशत परिणाम दिया। उसके बाद सीकर के शिक्षा जगत में एक नई क्रांति आ गई। इन्होंने अनेक निजी विद्यालय प्रारंभ करवाये और उनको मान्यता दिलवाई। आज सीकर में जितने भी प्रतिष्ठित निजी विद्यालय दिख रहे हैं उन सब को मान्यता श्री राम शिक्षा मंदिर के बाद में ही मिली। शिक्षा जगत के साथ-साथ धार्मिक जगत् में भी ईश्वर कृपा के अद्भुत चमत्कार के रूप में इनकी और इनके परिवार की विशेष प्रतिष्ठा है। शर्मा की सुपुत्री ने 5 वर्ष की अवस्था में श्रीमद्भगवद्गीता पूरी कंठस्थ कर ली उसके भाई को, बहन को ,पिता को और उसको सबको गीता कंठस्थ है । स्वामी रामसुखदास जी महाराज और जगद्गुरु शंकराचार्य जी कहते हैं कि संसार में शर्मा का यह एकमात्र ऐसा परिवार है जिसमें चार सदस्यों को गीता कंठस्थ याद है। स्वामी रामसुखदास जी महाराज का सीकर में चातुर्मास हुआ तो उन्होंने नन्ही सी बालिका गीता दाधीच को वहां खड़ा कर दिया और समस्त श्रोताओं को कहा कि आप उनसे गीता का कोई भी श्लोक पूछे लोगों ने जो श्लोक पूछा गीता दाधीच ने तुरन्त उसका शुद्ध उच्चारण कर दिया। इन्होंने हजार से अधिक विद्यालयों के करीब दस लाख बच्चों को गीता के श्लोक याद करवाएं। सूचना का अधिकार कानून के तहत भी राष्ट्रीय स्तर पर इनकी विशेष पहचान है। इन्होंने 500 से अधिक आरटीआई डाली है। उन्होंने आरटीआई कानून के तहत अनेक अधिकारियों पर जुर्माना लगवाया और सरकार को अनेक नए कानून बनाने के लिए बाध्य किया। इनके समाचार देश के लगभग सभी भाषाओं के अखबारों में पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए है़।अनेक टीवी चैनलों पर इनका साक्षात्कार भी प्रसारित हुआ है। शर्मा का जीवन क्रांतिकारी रहा है आपातकाल में इन्होंने सत्याग्रह करके जेल की यात्राएं सही इसके कारण इनको राजस्थान सरकार ने स्वतंत्रता सेनानियों की तरह है सम्मान एवं पेंशन तथा अन्य सुविधाएं प्रदान की । शर्मा जहां भी रहे अन्याय और अत्याचार का खुलकर विरोध किया। सामाजिक और राष्ट्रीय कार्यों में हमेशा बढ़ चढ़कर भाग लिया। राम जन्मभूमि आंदोलन और गंगाजल रथ यात्रा में दांतारामगढ़ तहसील में जगह-जगह इन्होंने सभायें की। अब शर्मा ने अपने जीवन का एक ही लक्ष्य बना रखा है कि देश में कोई भी व्यक्ति गरीबी के कारण भूखा नहीं रहे। इसके लिए उन्होंने जबरदस्त आंदोलन छेड़ रखा है और पूरे देश में जगह-जगह ऐसे रोटी बैंक बनवाने का आंदोलन चला रहे हैं । जहां हर घर से एक या दो रोटी पहुंचा दी जाए जिनको जरूरत होगी वे लोग वहां भोजन कर लेंगे और जो बच जाएगा वह गौशाला में भिजवा दें। दांतारामगढ़ में भी कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहे इसके लिए उन्होंने कोर्ट के सामने रोटी बैंक की व्यवस्था कर रखी है।