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हाईकोर्ट की हिदायत विचारण न्यायालय विधि के आज्ञापक प्रावधानों की पालना करे

याचिका मंज़ूर कर मामले को वापस सुनवाई हेतु रिमांड किया

झुंझुनू, राजस्थान हाईकोर्ट ने झुझुनूँ सेशन जज द्वारा एक आपराधिक प्रकरण में विधि के आज्ञापक प्रावधानों की अनदेखी कर अभियुक्त के विरूद आरोप विरचित करने के मामले में अभियुक्त की ओर से दायर रिवीज़न याचिका को मंज़ूर कर मामले को वापस रिमाण्ड करते हुए विवादित आदेश दिनांक 16 .11.2022 को निरस्त कर दिया जिसके तहत अभियुक्त के विरुद्ध धारा 341,323,325 व 307 भा.द.स. के आरोप विरचित कर गवाह तलब कर दिये गये थे।

मामले के अनुसार मझाऊ निवासी अभियुक्त जयपाल सिंह की ओर से एडवोकेट संजय महला ने सेशन जज झुझुनूँ के दिनांक 16.11.2022 के आरोप विरचित करने के आदेश को ये कहते हुए चुनौती दी की विचारण अधीनस्थ न्यायालय ने विधि के सुस्थापित प्रावधानों का पालना किए बिना उक्त विवादास्पद आदेश पारित किया है। बहस में एडवोकेट संजय महला ने कहा कि आभियुक्त भारतीय सेना में है व जबलपुर पदस्थ है।जून 2021 में वह घर आया हुआ था तब अचानक बिजली के खम्बे को लेकर हुए विवाद में प्राणघातक चोट पहुँचाने के आरोप में गुढ़ा गोडजी थाने में एफ़.आई.आर. न. 280/2021 दर्ज हुई। इस प्रकरण में पूर्व में हाई कोर्ट ने अभियुक्त की एक अन्य दायर याचिका में गुढ़ा थाने को जाँच बाबत दिशा निर्देश जारी किए हुए है।बहस में कहा गया कि विद्वान ट्रायल जज ने अभियुक्त को बिना सुने हुए ही आरोप विरचित कर दिये है जो निरस्त किए जाने योग्य है।

मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश अशोक कुमार जैन ने याचिका का अवलोकन करने पर माना कि उक्त आदेश धारा 227 व 228 द.प्र.स. के आज्ञापक प्रावधानों की पालना किए बिना यांत्रिकी तरीक़े से पारित किया गया है। उन्होंने कहा कि अधीनस्थ अदालत के आदेश से ऐसा कन्हीं नहीं लगता की उन्होंने अभियुक्त व अभियोजन को सुना हो। हाई कोर्ट ने कहा की अधीनस्थ अदालत का आदेश बिना मस्तिष्क लगाये पारित किया गया है जो निरस्त किए जाने योग्य है।उन्होंने निगरानी याचिका मंज़ूर कर मामले को वापस रिमाण्ड करते हुए अभियुक्त को व अभियोजन को सुनने के बाद आरोप विरचित करने के आदेश देकर अभियुक्त को राहत दी।

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