नहीं छूट रहा सत्ता पर परिजनों को आसीन करवाने का मोह
झुंझुनू, भारत की डिफरेंट राजनीतिक पार्टी भाजपा की नीतियों एवं उनके नेताओं की कार्यशैली में इन दिनों विरोधाभास देखने को मिल रहा है। भाजपा ने पूरे देश में वंशवाद का विरोध किया था और शीर्ष स्तर पर कर भी रही है इसके लिए भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं ने यह साबित भी किया है कि देश में सर्वोच्च राजनीति के शिखर पर होने के बावजूद उन्होंने अपने परिजनों के लिए टिकट नहीं मांगी। लेकिन भाजपा के निचले स्तर पर बात करें तो पार्टी का कोई नेता अपने परिजनों के लिए लॉबिंग करने में कमी नहीं छोड़ रहा है। कल जिला मुख्यालय पर भाजपा ने राज्य सरकार के निजी वाहनों पर लागू किए गए टोल टैक्स के विरोध में धरना प्रदर्शन किया था। उस दरमियान एक रोचक बात देखने को मिली कि भाजपा के कई पदाधिकारी एवं वरिष्ठ कार्यकर्ता इस धरने प्रदर्शन से गायब थे। सूत्रों की मानें तो वे इन दिनों जयपुर में अपने परिजनों के लिए टिकट लेने की लॉबिंग कर रहे हैं। वही ऐसा भी लग रहा है कि समय अपने को दोहरा रहा है पिछली बार सांसद रही संतोष अहलावत ने नगर सभापति के पद पर अपने भतीजे सुदेश अहलावत को आसीन करवा दिया और सूरजगढ़ विधानसभा क्षेत्र से भी टिकट की दावेदारी का मोह वह नहीं छोड़ पाई जिसके चलते पार्टी में आज वह हाशिए पर चली गई है। अपने समय में झुंझुनू जिले की राजनीति के शिखर पर रही संतोष अहलावत आज सिफर पर पहुंच चुकी हैं। वर्तमान सांसद नरेंद्र कुमार की कार्यशैली हुबहू पूर्व सांसद संतोष अहलावत की तरह प्रतीत होती है। संतोष अहलावत के सांसद रहते हुए सूरजगढ़ का उपचुनाव हारा था। इसी प्रकार नरेंद्र कुमार के भी सांसद रहते मंडावा का उपचुनाव हार चुके हैं। उस दौरान संतोष अहलावत ने अपनी पति सुरेंद्र अहलावत के लिए सूरजगढ़ से टिकट मांगी थी और मंडावा उपचुनाव में सांसद नरेंद्र कुमार अपने बेटे को टिकट दिलाने के लिए प्रयासरत थे। संतोष अहलावत झुंझुनू नगर परिषद के पद पर अपने नजदीकी रिश्तेदार को आसन करवाने में सफल रही। वहीं वर्तमान सांसद नरेंद्र कुमार अपनी बेटी के लिए टिकट मांग रहे हैं और सामान्य महिला की सीट होने के चलते उन्हें सभापति पद का दावेदार माना जा रहा है। दोनों भाजपा नेताओं की कार्यशैली के समानता के चलते अब कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या सांसद नरेंद्र कुमार का भी हश्र संतोष अहलावत की तरह ही होगा। क्या भाजपा को फिर से सांसद प्रत्याशी के लिए किसी नए चेहरे पर दांव लगाना होगा। हालांकि अभी उसमें समय बहुत है लेकिन लोगों में जन चर्चाओं का यह बाजार इन दिनों गरमा रहा है की कही नरेंद्र कुमार भी संतोष अहलावत की तरह एक बार के सांसद ही तो नहीं है।