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श्री गोपाल गौशाला परिसर में सम्पन्न हुई तीज माता की पूजा

भगवती पार्वती सौ वर्षो की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थी

झुंझुनूं, हर साल सावण मास की हरियाली तीज को निकलने वाली श्री गोपाल गौशाला की और से कार्यक्रम के संयोजक नारायण प्रसाद जालान के संयोजकत्व में श्री गोपाल गौशाला प्रांगण से तीज माता की शाही सवारी अपराह्न 4 बजे गाजे बाजे के साथ रवाना होकर राणी सती रोड होकर छावणी बाजार आयी जहां श्री गल्ला व्यापार संघ के आतिथ्य में तीज माता की विधिवत रूप से पूजा अर्चना पंडित अनिल शुक्ला के आचार्यत्व में वेद मंत्रों के साथ मुख्य अतिथि जोईटं कमिश्नर स्टेट जीएसटी भीवाडी उमेश जालान, विशिष्ट अतिथि अतिरिक्त जिला पुलिस अधीक्षक डॉ.तेजपाल सिंह, बनवारी लाल सैनी, विश्वंभर पुनिया, कमलकान्त शर्मा, विश्वनाथ टीबडा, ताराचंद गुप्ता भौडकीवाला, किशोरी लाल टीबडा, कैलाश चंद्र सिंघानिया, श्री गोपाल गौशाला अध्यक्ष प्रमोद खण्डेलिया एवं सचिव नेमी अग्रवाल सहित अन्य जन के द्वारा सम्पन्न की गयी। कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ.डी.एन.तुलस्यान ने किया। समारोह में कार्यकारिणी अध्यक्ष प्रमोद खण्डेलिया, सचिव नेमी अग्रवाल, कोषाध्यक्ष राजकुमार तुलस्यान, नारायण प्रसाद जालान, डॉ.डी.एन.तुलस्यान, आनंद टीबड़ा, विपिन राणासरिया, पार्षद अनिल कुमावत, सम्पत्त चुडैलावाला, पवन गुढावाला, विनय अग्रवाल, नितिन नारनोली, महेश बसावतिया, चन्द्र प्रकाश टीबडा, केशरदेव सर्राफ सहित अन्य गौ-भक्त उपस्थित थे।

किंदवंती कथा के अनुसार तीज श्रावण शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनायी जाती है इस दिन भगवती पार्वती सौ वर्षो की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थी इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। राजस्थान में एक बड़ी ही प्यारी लोक कहावत प्रचलित है। तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर…यानी सावनी तीज से आरंभ पर्वों की यह सुमधुर श्रृंखला गणगौर के विसर्जन तक चलने वाली है। सारे बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, श्राद्ध-पर्व, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली का पांच-दिवसीय महापर्व आदि…तीज माता की भव्य सवारी निकाली जाती है जिसको देखकर मन खुशी से झूम उठता है। हमारो प्यारो रंगीलो राजस्थान हमेशा से ही तीज-त्योहार, रंग-बिरंगे परिधान, उत्सव और लोकगीत व रीति रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। तीज का पर्व राजस्थान के लिए एक अलग ही उमंग लेकर आता है जब महीनों से तपती हुई मरुभूमि में रिमझिम करता सावन आता है तो निश्चित ही किसी उत्सव से कम नहीं होता। श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन श्रावणी तीज, हरियाली तीज मनाई जाती है… इसे मधुश्रवा तृतीया या छोटी तीज भी कहा जाता है।

तीज के एक दिन पहले (द्वितीया तिथि को) विवाहित स्त्रियों के माता-पिता (पीहर पक्ष) अपनी पुत्रियों के घर (ससुराल) सिंजारा भेजते हैं। जबकि कुछ लोग ससुराल से मायके भेजी बहु को सिंजारा भेजते हैं। विवाहित पुत्रियों के लिए भेजे गए उपहारों को सिंजारा कहते हैं, जो कि उस स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। इसमें बिंदी, मेहंदी, सिन्दूर, चूड़ी, घेवर, लहरिया की साड़ी, ये सब वस्तुएं सिंजारे के रूप में भेजी जाती हैं। सिंजारे के इन उपहारों को अपने पीहर से लेकर, विवाहिता स्त्री उन सब उपहारों से खुद को सजाती है, मेहंदी लगाती है, तरह-तरह के गहने पहनती हैं, लहरिया साड़ी पहनती है और तीज के पर्व का अपने पति और ससुराल वालों के साथ खूब आनंद मनाती है।

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