खाचरियावास कस्बे में
खाचरियावास कस्बे में गणगौर का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां 200 साल पुरानी ईसर-गणगौर की प्रतिमा आज भी पहले की तरह ही है। राजा महाराजाओं के राज परिवार ने ईसर-गणगौर की प्रतिमा का स्वरूप दिया था। उस समय से लेकर आज तक ईसर-गणगौर की प्रतिमा का वहीं स्वरूप बरकार है साथ ही ईसर-गणगौर की सवारी देखने के लिए सैकड़ो की संख्या में आस-पास के गांवो के लोग आते है। दो दिन सवारी निकालने के बाद दोनों ही प्रतिमाओं को कवर लगाकर ऊनी वस्त्रों मे लपेटकर सुरक्षित रखा जाता है जिससे कि उसका मूल स्वरूप खराब न हो सके। राज परिवार रियासत काल के समय से ही गणगौर की सवारी 2 दिन निकाली जाती है। पहले दिन शाही लवाजमें के साथ गढ़ से रवाना होकर मुख्य बाजार गणगौरी चौक में ईसर-गणगौर की सवारी को विराजमान किया जाता है। जहां नवविवाहिता व महिलाएं पूजा अर्चना करती है तथा सूर्योदय के बाद वापस राज परिवार की परम्परा की भांति गढ़ मे ले जायी जाती है। दूसरे दिन फिर गणगौर की सवारी गढ़ से ईसर-गणगौर की सवारी गाजे -बाजे के साथ रवाना होकर चिन्हित घर-घर जाकर गढ़ के सामने मैदान में विराजमान किया जाता है। जहां पर बोलावणी के दिन विशाल गणगौर का मैला भरता है।
आठ को निकलेगी शाही सवारी:- गणगौर का पारंपारिक पर्व 8 अप्रैल को मनाया जायेगा। मेला समिति के अध्यक्ष डी.पी. सौलंकी ने बताया कि गणगौर की ऐतिहासिक सवारी निकालने की तैयारी शुरू कर दी गई है। गढ़ के सामने स्थित मेला मैदान में पेड़ों पर काफी संख्या में मधुमक्ख्यिों के छत्ते लगे है। मेला आयोजन के दिन गढ़ में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर जीणमाता को भोग लगाकर धोक लगाई जाती है। जिससे मेले का आयोजन शांतिपूर्वक सम्पन्न हो सके।