चूरू, [सुभाष प्रजापत ] सालासर बालाजी में गुरुवार को सबसे बड़े श्राद्ध का आयोजन हुआ। जिसमें 25 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। गुरुवार को मंदिर के संस्थापक मोहनदास महाराज के 229 वें श्राद्ध पर दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने महात्मा मोहनदास महाराज की समाधि पर धोक लगाई। सुबह बालाजी की आरती के बाद समाधि पर भोग लगाया गया। देश के इस सबसे बड़े श्राद्ध में 21 टन देशी घी का हलवा बनाया गया। जिसमें तीन टन आटा, चार टन घी और आठ टन चीनी का इस्तेमाल किया गया।साथ ही प्रसाद में कई टन सुस्वा चना की सब्जी परोसी गई। हनुमान सेवा समिति के अध्यक्ष यशोदानंदन पुजारी ने बताया कि संवत 1850 में वैशाख सुदी तेरस को मंदिर के संस्थापक महात्मा मोहनदास महाराज ने समाधि ली थी। तभी से इसे महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मनोहर पुजारी ने बताया कि इतना बड़ा श्राद्ध देश में कही नहीं होता है।पुजारी ने बताया कि प्रसाद को बनाने में करीब 250 हलवाई लगे। एक दिन पहले ही प्रसाद बनाना शुरू कर देते हैं, जो बारस की पूरी रात तक चलता है। वहीं श्राद्ध के दिन सैंकड़ों कार्यकर्ताओं और पुजारी परिवार के लोगों ने इसे श्रद्धालुओं को परोसा ।
मान्यता है कि इस प्रसाद को खान वाले श्रद्धालु स्वस्थ रहते हैं। उनका आरोग्य बढ़ता है।सालासर बालाजी के अनन्य भक्त थे महात्मा मोहनदासमहात्मा मोहनदास महाराज बालाजी के अनन्य भक्त थे। ऐसी मान्यता है कि उनकी अनन्य भक्ति से खुश होकर बालाजी ने महात्मा मोहनदास को सपने में दर्शन दिए थे। जिसके बाद जसवंतगढ़ कस्बे के नजदीक आसोटा गांव में सालासर बालाजी की मूर्ति एक किसान को खेतों में हल चलाते हुए मिली। महात्मा मोहनदास की प्रेरणा से आसोटा में मिली मूर्ति सालासर लाई गई। जहां संवत 1811 (सन 1755) में मंदिर का निर्माण करवाया गया। जिस पर उस समय पांच रुपए की लागत आई थी। मंदिर परिसर में महात्मा मोहनदास के समयका पवित्र धूणा भी है। इस धुने पर श्रद्धालु धोक लगाते हैं और इसकी भस्म को माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं।