सूचना एवं जनसंपर्क विभाग झुंझुनू : ‘घर का पूत कुंवारा डोले, पाड़ोसियां का फेरा… ’
झुंझुनू जिला प्रशासन के साथ सरकार की भी पकड़ हुई ढीली
झुंझुनू, आपने राजस्थानी यह कहावत तो सुनी ही होगी कि ‘घर का पूत कुंवारा डोले, पाड़ोसियां का फेरा… ’ यह बात सूचना एवं जनसंपर्क विभाग झुंझुनू पर सटीक बैठती है या हम यूं कहे कि सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू पर यह बात सटीक बैठती है तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि किसी भी विभाग का मुखिया होने के चलते सारी जिम्मेदारी उसी अधिकारी के कंधे पर ही होती है। आपको बता दें कि आज 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस है और हिंदी पत्रकारिता के लिए यह दिन मील के पत्थर से कम नहीं है। 30 मई 1826 को उदंत मार्तंड नामक समाचार पत्र की पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से शुरुआत की थी। जिसके चलते हिंदी पत्रकारिता के लिए यह दिन अपने आप में बहुत ही विशेष है। देश – प्रदेश में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम इस दिन आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही राजस्थान के अनेक सूचना केन्द्रो में भी आज हिंदी पत्रकारिता दिवस के ऊपर कार्यक्रमों का आयोजन किया गया लेकिन झुंझुनू सूचना एवं जनसंपर्क विभाग अपनी मस्ती में ही मस्त रहता है न तो उन्हें पत्रकारों के हितों से और ना ही उन्हें सरकार की योजनाओं को आम जनता तक ठीक तरीके से पहुंचाने से मतलब है बल्कि स्वयंभू होकर काम करने का आदि हो चुका है। आपको बता दें कि सूचना जनसंपर्क अधिकारी हिमांशु सिंह ने जब से यहां पर कार्यभार संभाला है। हिंदी पत्रकारिता दिवस के साथ अन्य प्रेस से जुड़े हुए दिवसों पर कोई भी कार्यक्रम का आयोजन यहां पर नहीं किया जाता है। यानि सीधे-सीधे पत्रकारों से मुखातिब होने या सामना करने की इच्छा शक्ति भी सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी झुंझुनू में खत्म हो चली है। अब आते हैं मुद्दे पर ‘घर का पूत कुंवारा डोले, पाड़ोसियां का फेरा… ’ यह बात हमने इसलिए कही है की सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी ने आज झुंझुनू जिले के एक निजी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता दिवस की संगोष्ठी में भाग तो लिया लेकिन उन्हें ने कभी भी सूचना केंद्र में ऐसे आयोजनों को करवाने के लिए कोई भी इच्छा शक्ति नहीं दिखाई। वहीं सूचना जनसंपर्क अधिकारी की कार्य शैली पिछली सरकार के समय से ही खुद को खुदा मान कर काम करने की चलती आ रही है। वर्तमान झुंझुनू जिला प्रशासन ने इन पर कुछ अंकुश जरूर लगाया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो इस अंकुश का सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी को ही फायदा मिला है। बिना किसी जिला प्रशासन की बैठकों में जाए अपने कार्यालय के आलीशान ए सी के कमरे में बैठते हैं और ड्यूटी पूरी….? करके घर पर चले जाते हैं। हालांकि हाल ही में झुंझुनू जिले के प्रभारी सचिव डॉक्टर समित शर्मा ने जिला स्तरीय अधिकारियों की बैठक ली थी उसे दौरान सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी अंतिम दीर्घा [ओट में ] में बैठे हुए जरूर दिखाई दिए थे और सहायक सूचना एवं संपर्क अधिकारी विकास चाहर मुख्य पंक्ति में बैठे हुए दिखाई दिए थे जिसको लेकर भी पत्रकारों में अच्छी खासी चर्चाएं अभी तक चल रही है। वहीं वर्तमान में सरकार लापरवाह और अकर्मण्य अधिकारियों को लेकर समीक्षा कर रही है। इसमें कार्य अवधि और उम्र की शर्तें लगी हुई हैं। सरकार को चाहिए कि इन शर्तों से ऊपर उठकर भी जो ऐसे अधिकारी हैं उनकी भी समीक्षा की जाए। पड़ोसी जिले चूरू में भी आज पत्रकारिता दिवस पर संगोष्ठी हुई थी और वह भी सूचना केंद्र में, जिसमे जिला कलेक्टर भी पहुंची थी लेकिन झुंझुनू जिले में तो पत्रकार संगोष्ठी होने की बातें अब वर्षों पुरानी हो चली हैं।