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भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण महोत्सव का आयोजन

दिगम्बर जैन मंदिरों में हुई विशेष पूजा-अर्चना

सीकर, सीकर सहित जिले भर में भगवान महावीर के निर्माण महोत्सव का आयोजन शुक्रवार को मनाया गया। सभी जिनालयों दिगंबर जैन मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना के आयोजन किये। नया मंदिर के अध्यक्ष गोपाल काला मंत्री पवन छाबड़ा ने बताया कि नित्य नियम और शांति धारा के बाद मोक्ष कल्याणक लाडू चढ़ाया जाएगा। विश्व वन्दनीय जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का 2551 वां निर्वाणोत्सव महा महोत्सव शुक्रवार को भक्ति भाव से मनाया गया। प्रियंक जैन ने बताया कि इस अवसर नगर के बजाज रोड स्थित शांतिनाथ नया दिगंबर जैन मंदिर में एवं जिले के सभी 11 जिनालयों दिगम्बर जैन मंदिरों में पूजा-अर्चना सहित निर्वाण लाडू चढ़ाने के विशेष आयोजन किया गया। प्रातः जिन अभिषेक, नित्य नियम पुजन शांतिधारा के बाद भगवान महावीर स्वामी की अष्ट द्रव्य से पूजा-अर्चना की जाएगी। पूजा के दौरान निर्वाण कांड भाषा के सामूहिक उच्चारण पश्चात जयकारों के साथ मोक्ष कल्याणक अर्घ्य तथा निर्वाण लाडू चढ़ाया गया ।वरिष्ठ समाजसेवी पंडित जयंत शास्त्री ने कहा कि भगवान महावीर का निर्वाण अमावस्या को प्रातः काल हुआ था।महानिर्वाण उत्तर पुराण में आचार्य गुणभद्र ने लिखा है कि सातवीं-आठवीं शताब्दी में लिखा है कि 15 अक्टूबर 527 वि.स.ई. की कार्तिक कृष्ण अमावस्या स्वाति नक्षत्र के उदय होने पर भगवान महावीर ने सुप्रभात की शुभ बेला में अघातिया कर्मों को नष्ट कर निर्माण प्राप्त किया था। उस समय दिव्य आत्माओं ने महावीर प्रभु की पूजा अर्चना की और अत्यंत दीप्ति मान जलती प्रदीप पंक्तियों के प्रकाश में आकाश तक को प्रकाशित करती हुई पावा नगरी सुशोभित हुई। सम्राट श्रेणिक आदि नरेंद्रों ने अपनी प्रजा के साथ निर्माण उत्सव मनाया। उसी समय से प्रतिवर्ष महावीर जिनेंद्र के निर्माण को अत्यंत भाव एवं श्रद्धा पूर्वक मनाया जा रहा है। नैवेद लाडू से पूजा की जाती है। इसका उल्लेख प्रसिद्ध जैन ग्रंथ हरिवंश पुराण में भी है जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पारसनाथ के 256 वर्ष साढ़े तीन माह बाद महावीर का जन्म हुआ था। 72 वर्ष की उम्र के अंत में श्री शुभ मिति कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के अंत समय अमावस्या के प्रातः काल स्वाति नक्षत्र में मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त किया। इस समय भगवान महावीर के प्रथम गणधर श्री गौतम स्वामी को केवल ज्ञान रूपी लक्ष्मी प्राप्त हुई और देवों ने रत्न मई दीपकों का प्रकाश कर उत्सव मनाया।

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