पौते को जीताने के लिए ताऊ और बाबोसा एक मंच पर आये थे साथ
दांतारामगढ़,( लिखा सिंह सैनी ) सन् 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद से अब तक दांतारामगढ़ यहां बीजेपी का खाता नहीं खुल सका और इस बार भी उम्मीदें पूरी हों इसका दावा नहीं किया जा सकता हैं । शेखावाटी में नवलगढ़ वह दांतारामगढ़ विधानसभा ऐसे हैं जहां अबतक कमल नही खिल सखा । इस बार चुनाव मैदान में आरएलपी होने के कारण सभी पार्टियों का जीत का समीकरण बदलेगा। आरएलपी क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस के वोटों को तोड़ेगी जिसमें माकपा को फायदा भी हो सकता है। क्षेत्र जाट बाहुल्य होने के कारण यहां सन् 1980 से लगातार जाट उम्मीदवार विधायक बनते आ रहे हैं अलग अलग पार्टीयों से,जाट बाहुल्य क्षेत्र होने के साथ – साथ यहां के जाट मतदाता अन्य जाति के उम्मीदवार को अधिक महत्व नहीं देते हैं इसी कारण से कई बार भाजपा यहां पर बहुत कम मतों से हार जाती है । समभवता इस बार भी भाजपा में गैर जाट उम्मीदवार के अलावा अन्य को टिकट मिला तो शायद भाजपा को और करने पड़ेंगे जतन। जाटों के बाद में दुसरे नम्बर पर कुम्हार कुमावत समाज के वोटर हैं इसी समाज के हरिश्चंद्र दो बार बहुत कम मतों से हारे थे। शायद अधिक आयु होने पर इनको तीसरी बार अवसर नहीं मिल पायेगा।भाजपा में उम्मीदवारों की संख्या अमर बेल की तरह बढ़ रही है।ऐसे में राजनीति के जानकारों की मानें तो पूर्व जिला प्रमुख रीटा सिंह के भाजपा में शामिल होने की चर्चा है । सिंह के भाजपा में शामिल होने पर पूरे जिले के समीकरण बदल सकते हैं । रीटा सिंह सर्व मान्य नेत्री है, जन सामान्य में उनका क्रेज है ।भाजपा में शामिल होने पर यहां कमल खिलाने में पार्टी को अधिक कष्ट नहीं होगा । लेकिन बुद्धिजीवियों का मानना है की सिंह अपने परिवार व पार्टी के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेगी, आगे फिर राजनीति है इसमें कब क्या होता है यह सही समय आने पर मालुम चलेगा। इसी साल के नवम्बर, दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं क्या इस चुनाव में परिवारवाद, जातिवाद, गुटबाजी खत्म होकर क्या नया गुल खिलेगा या बार बार हर बार की तरह ही वर्तमान विधायक ही आयेगा।इस बार दांतारामगढ़ में किस की उम्मीदें पूरी होगी यह कहना मुश्किल है ।इस बार परंतु एक नया गुल जरुर खिलेगा कमल खिलाने के लिए चाहे धनबल से चाहे अपनी पहचान से पार्टी इस बार कमल खिलाने के लिए करगी प्रयास।
पौते को जीताने के लिए ताऊ और बाबोसा एक मंच पर आये थे साथ
देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री व सीकर के पूर्व सांसद चौधरी देवीलाल ताऊ व पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत बाबोसा ने मिलकर ही पश्चिमी भारत में कांग्रेस पार्टी के ख़िलाफ़ अलख जगायी थी ,उसी दौरान सन् 1990 के विधानसभा चुनावों में बाबोसा के आह्वान पर चौधरी देवीलाल के पौते अजय सिंह चौटाला को दांतारामगढ़ से विधायक बनाने के लिए ताऊ और बाबोसा मंच पर एक साथ आये थे, चौधरी नारायण सिंह को 6163 मतों से हराकर अजयसिंह दांतारामगढ़ के विधायक बने थे, परंतु चुनावों के बाद अजय सिंह को दांतारामगढ़ में नहीं देखा गया ।
अबतक किसने किसको कितने मतों से हराया
सन् 1952 में भैरोंसिंह ने कांग्रेस के विद्याधर को 2833 मतों से हराया, सन् 1957 में मदनसिंह ने कांग्रेस के जगनसिंह को 4687 मतों से हराया, सन् 1962 में जगनसिंह ने मदनसिंह को 612 मतों से हराया , सन् 1967 में मदनसिंह ने जगनसिंह को 11306 मतों से हराया, सन् 1972 में नारायण सिंह ने मदनसिंह को 3595 मतों से हराया, सन् 1977 में मदनसिंह ने कांग्रेस के नारायण सिंह को 1224 मतों से हराया, सन् 1980 में नारायण सिंह ने कल्याण सिंह को 1461 मतों से हराया, सन् 1985 में नारायण सिंह ने भाजपा के जगदीश शर्मा को 12890 मतों से हराया, सन् 1990 में अजय सिंह ने नारायण सिंह को 6163 मतों से हराया, सन् 1993 में नारायण सिंह ने शिवनाथ सिंह को 15137 मतों से हराया, सन् 1998 में नारायण सिंह ने शिवनाथ सिंह को 18967 मतों से हराया, सन् 2003 में नारायण सिंह ने मदन पुजारी को 14962 मतों से हराया, सन् 2008 में माकपा के अमराराम ने नारायण सिंह को 4919 मतों से हराया, सन् 2013 में नारायण सिंह हरिश्चंद्र को 575 मतों से हराया, सन् 2018 में विरेन्द्र सिंह ने हरिश्चंद्र को 920 मतों से हराया था।