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आजकल कौनसा च्वनप्राश खाने लगे है सरकारी स्कूल के विद्यार्थी

हाल ही मे विभिन्न र्बोड कक्षाओं के परिणाम आ रहे है उनमे सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम उत्कृष्ट आ रहे है ये एक सुखद अनुभव है। परन्तु तत्काल ही मन मे प्रश्न उत्पन्न होता है कि हमारे सरकारी स्कूलों के योग्यताधारी शिक्षकों ने स्कूलों मे नीद लेना छोड दिया है। ये उसका परिणाम है। या यकायक हमारे सरकारी शिक्षा तंत्र मे जान आ गयी है। या अल्लादीन का चिराग सरकारी शिक्षकों के हाथ लग गया है। कभी कभी मै सोचता हैू कि क्या पता सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी कोई नया च्वनप्राश खाने लगे है। जो तुरन्त डिस्परिन की तरह काम करता हो। हम यहां सरकारी स्कूलों की निन्दा या निजि स्कूलों की कोई पैरवी नही कर रहे है। बल्कि एक तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। जहां धुए के सकेत हो वहा पर आग की खोज करना हमारे पेशे के लिए लाजमी है। परन्तु यहा तो धुएं के गुब्बार दिखाई पड रहे हो वहां बात भी न करना सही नही होगा। हमने बोर्ड की परीक्षा के इन्जामात के बारे मे जब निजि स्कूलों के छात्रों से बात की तो कुछ नये रोचक किस्से हमे सुनने को मिले। सभी छात्र छात्राओं के परिक्षा केन्द्र सरकारी स्कूलों मे ही बनाए जाते है। इनकी सिटिंग अरेन्जमेन्ट की पूरी जिम्मेदारी सरकारी शिक्षकों पर ही होती है ये उनकी इच्छा है कि सरकारी व निजी स्कूलो के बच्चों की बैठने की व्यवस्था वे कैसे व कहां करते है। क्या हमारी सभी सरकारी स्कूलों मे सीसीटीवी कैमरे लग चुके है ? या लग चुके है तो क्या गारण्टी है कि वो काम कर रहे हो। या पूरे परिक्षा के समय लाईट न जाती हो। इस प्रकार के कुछ प्रश्न मन मे उधेड बुन करते रहते है। बहरहाल इसमे कोई शक नही है कि हमारे सरकारी स्कूलों के शिक्षक प्रतियोगी परीक्षाएं तोड कर यहां तक आते है। उनकी काबीलियत पर शक नही किया जा सकता है। फिर भी अब तक वांछीत परिणाम क्यो नही मिल रहे थे। अब अचानक से जो परिवर्तन आया है उसके कारण मन का आंशकित होना लाजमी है। यह प्रश्न उठना जायज भी है क्योकि इन बच्चों मे ही हमारे देश का भविष्य पल रहा है। हम नही चाहते कि हमारे शिक्षा तंत्र से निकला कोई ऐसा इंजिनियर पुल बनाए जो ताश के पत्तों की तरह ढह जाये और सैंकडो जिंदगियां काल का ग्रास बन जाये।

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