शीत लहर एवं पाले से फसल की सुरक्षा के उपाय अपनाएं
सीकर, संयुक्त निदेशक कृषि (विस्तार) जिला परिषद सीकर रामनिवास पालीवाल ने बताया कि वर्तमान में राज्य में चल रही शीतलहर एवं मौसम विभाग की चेतावनी के दृष्टिगत फसलों को पाले व शीत लहर के प्रकोप से बचाव के निम्न उपाय अपनाएं – जब पाला पडने की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनी चाहिये। नमीयुक्त जमीन में काफी देरी तक गर्मी रहती है तथा भूमि का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है। इस प्रकार पर्याप्त नमी होने पर शीत लहर व पाले से नुकसान की संभावना कम रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार सर्दी में फसल में सिंचाई करने से 0.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्शियस तक तापमान बढ़ जाता है। जिन दिनों पाला पडने की संभावना हो उन दिनों फसलों पर घुलनशील गन्धक 0.2 प्रतिशत अथवा गंधक का तेजाब 0.1 प्रतिशत की दर से 1000 लीटर प्रति हैक्टयर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिये। ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे। छिड़काव का असर दो सप्ताह तक रहता है। यदि इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की संभावना बनी रहे तो छिडकाव को 15-15 दिन के अन्तर से दोहराते रहें। सरसों, गेहूँ, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गन्धक तेजाब 0.1 प्रतिशत का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्व की जैविक एवं रासायनिक सक्रियता बढ़ जाती है जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने में एवं फसल को जल्दी पकाने में सहायक होती है। जिस रात पाला पडने की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आस-पास खेतों की उत्तरी पश्चिमी दिशा से आने वाली ठण्डी हवा की दिशा में खेतों के किनारे, पर बोई हुई फसल के आस-पास मेड़ों पर कूडा कचरा या अन्य व्यर्थ घ पास फूस जलाकर धुआं किया जा सकता है। इससे 4 डिग्री सेल्शियस तापक्रम आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि पौधशालाओं के पौधों एवं सीमित क्षेत्र वाले उद्यानों , नगदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के ताप को कम न होने देने के लिय फसलों को टाट, पोलीथिन अथवा भूसे से ढक देवें। वायुरोधी टाटियां, हवा आने वाली दिशा की तरफ यानि उत्तर पश्चिम की तरफ बांधे। नर्सरी, किचन गार्डन में उत्तर-पश्चिम की तरफ टाटियां बांधकर क्यारियों के किनारों पर रात्रि में लगाये तथा दिन में पुनः हटायें।
संयुक्त निदेशक कृषि रामनिवास पालीवाल ने बताया कि दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचाने के लिये खेत की उत्तरी-पश्चिमी मेड़ों पर तथा बीच-बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे शहतूत, शीशम, बबूल, खेजडी, अरडू एवं जामुन आदि लगा दिये जाये, तो पाले और ठण्डी हवा के झौंकों से फसल का बचाव हो सकता है।