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बाय का अनोखा दशहरा मेला रावण जलता नहीं मोक्ष को प्राप्त हो जाता है

दातारामगढ़ तहसील के बाय गाव में

सीकर, [नरेश कुमावत ] भारतवर्ष के सभी भागों मे उत्साह और उमंग से मनाए जाने वाले बड़े त्यौहारों में दशहरा प्रमुख है। बाय में इस अवसर पर एक विशाल मेला लगता है जो पूरे राजस्थान में अपनी अलग पहचान बनाई हुई है। एक बड़ा सा मैदान जिसमें मुखौटे पहने एक और राम की सेना हाथो मे तीर कमान लिए हुए थी तो दूसरी ओर रावण की सेना ढाल और तलवार दोनों सेनाऔ मे भंयकर संग्राम होता है आखिरकार राम ने दशानन का अंत कर बुराई पर विजय पाने के बाद सारा वातावरण राम नाम के जयकारो से गुंजायमान हो जाता है। जीत के जश्न के साथ आसमान रंग बिरंगी आतिशबाजी से चमचमा उठता है। दातारामगढ़ तहसील के बाय गाव में दशहरा मेला विगत 161वर्षों से उससे भी अधिक समय से मनाया जा रहा है। इस गांव में रावण के पुतले का दहन नहीं कर ग्रामीण दक्षिण भारतीय संस्कृति पर आधारित मुखौटे पहन कर नगाड़े के तान पर राम और रावण की सेना आदि किरदार बनकर आपस में युद्ध करते हैं। बाय का यह दशहरा मेला एक अलग पहचान बनाई हुए है श्री दशहरा मेला समिति की ओर से आयोजित विजयदशमी महोत्सव को देखने के लिए बाय सहित दातारामगढ़ तहसील के सभी प्रवासी हजारों की तादाद में रात भर चले लीला में स्थानीय कलाकारों ने शेषाअवतार विष्णु, सरस्वती, सिंह वाहिनी , संतोषी मां आदि अनेक तरह के देवी देवताओं के मुखौटे लगाकर नगाड़ो की थाप पर नाचते है। जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोग पूरी रात जमा रहते हैं। उल्लेखनीय है कि इस दशहरे में भाग लेने वाले गांव के तकरीबन 260 कलाकार स्वंय अपना खर्चा वहन करते हैं।

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