देश आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मना रहा है
दांतारामगढ़, (लिखासिंह सैनी ) आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के तहत दांता के युवाओं ने गांव की सबसे ऊंची जगह दांता किला (गढ़) पर तिरंगा फहराया। जानकारी के अनुसार दांता के युवाओं ने नगरपालिका उपाध्यक्ष कैलाश कुमावत व चिरंजीलाल ठेकेदार की अगुवाई में दांता के पहाड़ पर बने किले पर तिरंगा फहराया है । इससे पहले गढ़़ पर आजादी से पहले यहा के अंतिम राजा ठाकुर मदनसिंह दांता के राज में पंचरंगी व भगवा ध्वज फहराये जाते थे । अमृत महोत्सव के दौरान घर,घर तिरंगा फहराया जा रहा है । गढ़ पर तिरंगा फहराने के मौके पर नगरपालिका उपाध्यक्ष कैलाश कुमावत, चिरंजीलाल ठेकेदार, पार्षद प्रतिनिधि अमित काला, पार्षद हेमंत कुमावत, जुगल किशोर शर्मा, नरेश पारीक आदि लोग उपस्थित थे।
लगान बंद होने पर खिलें थे किसानों के चहरे
आज़ादी से पहले देश अंग्रेजों के अधीन था । हर गाँवों में जागीरदार, राजा महाराजाओं द्वारा बनाये नियम लागु थे । उस दौरान दांता व आसपास के गांवों के किसानों को लगान चुकाने पड़ते थे । जब देश आजाद हुआ ओर लगान बंद हुआ तो बुजुर्ग बताते है कि उस दौरान सभी किसान बहुत खुश थे । लगान बंद होने पर खिलें थे किसानों के चहरे, आजादी के कुछ सालों बाद ही किसानों को सरकार द्वारा जमीनों के पर्चे भी मिले ओर लगान की जगह राजस्व विभाग द्वारा हासिल लगना शुरू हुआ था । आजादी से पहले किसानों ने लगान के लिए सीकर ,कुदन, कटराथल आदि जगहों पर आंदोलन किये थे ।
आंदोलन में भाग लिया था शास्त्री ने
शेखावाटी क्षेत्र के प्रजामंडल आंदोलन के अमर सैनानी रहे दांता कस्बे के उत्कृष्ट चिकित्सक वैद्य हनुमान दत्त शास्त्री इन्होंने आजादी से पहले प्रजामंडल के कई आंदोलन में भाग लिया था । आजादी से पूर्व में प्रजामंडल की एक सभा दांता में भी हुई थी । अमर सैनानी वैद्य हनुमान दत्त शास्त्री का निधन 23 दिसंबर 1969 में हुआ था।
दिपावली पर नहीं जले थे दीपक
सन् 1962 में भारत- चीन युद्ध में चीन हमारे लिए दिवाली पर विलेन बनकर आया था। उस साल दिवाली से ठीक पहले चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया था। तब सीमा पर जरूर गोलाबारूद की आतिशबाजी हो रही थी, लेकिन देश में उस समय दीपावली पर्व पर दीपक नहीं जले थे ,इस युद्ध में दांतारामगढ़ के सुरेरा के जतनसिंह व त्रिलोकपुरा के जतनसिंह शेखावत शहीद हुए थे।
आजादी से पहले थे स्कूल व अस्पताल
दांता कस्बा दानदाताओं व भामाशाहों का है जिसके कारण से ही देश आजाद होने से पहले भी थे दांता में स्कूल व आयुर्वेदिक अस्पताल कुछ लोगो के पास उस समय गाडियां भी थी । दांता के अंतिम राजा ठाकुर मदनसिंह देश आजादी के बाद राजनीति में आये थे। आजादी के कुछ सालों बाद दांता में विद्युतीकरण हुआ टेलीफोन सेवाएं शुरू हुई । 80 के दशक में जलदाय विभाग द्वारा घरों में नल लगाये गये, बड़ा अस्पताल बनाया गया था ।
दांता नगरपालिका बनी फिर पंचायत ओर अब वापस नगरपालिका बनी
दांता नगरपालिका सन् 1952 से सन् 1961 तक थी जिसके प्रथम चैयरमैन स्व.मुलचंद छाबड़ा थे 1952 से 1956 तक उसके बाद द्वितीय चैयरमैन 1956 से 1961 तक स्व.जगदीश वैद्य थे । सन् 1961 में दांता के आसपास के राजस्व ग्राम अलग होने पर पर दांता को सन् 1961 में ग्राम पंचायत बना दिया था जिसके प्रथम सरपंच स्व . केशरीमल कासलीवाल बने थे ।गजानंद वैद्य सन् 1964 से सन् 1977 तक स्व.गोपीचंद कासलीवाल 1977 से 1981 तक फिर से गजानंद वैद्य सन् 1981 से 1988 तक गजानंद वैद्य 21 सालों तक दांता के सरपंच रहे । स्व.ठा.ओमेंद्र सिंह सन् 1988 से सन् 1991 तक सन् 1991 से 1995 तक प्रशासन काल रहा (प्रशासक नियुक्त रहा) उसके बाद सन् 1995 में दांता पंचायत में प्रथम महिला सरपंच स्व. सुवादेवी कुमावत बनी सन् 2000 तक। मुलचंद भार्गव सन् 2000 से सन् 2005 तक । घीसालाल वर्मा सन् 2005 से 2010 तक , कृष्णा कंवर सन् 2010 से 2015 तक , हरकचंद जैन सन् 2015 से 2000 तक। सन् 2020 से विमला देवी सरपंच, सन् 2022 में जुलाई महिने में 61 सालों बाद दांता फिर से नगरपालिका बन गया है सरपंच व वार्ड पंचों को नगरपालिका बनने पर चैयरमैन व पार्षद बना दिया है।
गौ सेवा में लगे दांतावासी
आजादी की साल में बना दांता का गौशाला जिसमें वर्तमान में भामाशाहों द्वारा काफी कार्य करवाया जा रहा है । गौ सेवकों द्वारा गौ सेवा की जा रही है ।भामाशाह बीएल मित्तल द्वारा काफी कार्य करवाया जा रहा है साथ ही गुरुवार को इनके द्वारा हर गुरुवार को 2.5 क्विंटल का दलिया गोमाताओ को खिलाया जा रहा है। गौशाला में दांता के जनप्रतिनिधियों सहित अनेक लोग सेवाएं प्रदान करते है।दांता के भामाशाहों द्वारा काफी सहयोग किया जा रहा है। दांता में भरतकुमार द्वारा ओम गौसेवा केंद्र बनाकर गौ सेवा की जा रही जिसमें भी काफी संख्या में गौसेवक डाक्टर सेवाएं प्रदान कर रहे है।