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बेटी को घोड़ी पर बैठाकर निकाली बनोरी

बेटी को घोड़ी पर बैठाकर बनोरी निकालते

सिंघाना [के के गाँधी ] शिक्षित समाज पुरानी रूढ़ीवादी परम्पराओं को तोड़ते हुए क्षेत्र में नई पहल कर रहा है जिसका हर समाज स्वागत कर रहा है। पहले बेटी जन्म पर परिजन दु:खी होते थे उनको समाज में उचित स्थान नही मिलता था लेकिन आज का पढ़ा लिखा तबका बेटी बेटे को एक समान अधिकार दे रहा है। ढ़ाढोत कलां गांव में भानाराम मेघवाल ने अपनी बेटी पूनम की शादी के अवसर पर बेटी को घोड़ी पर बैठाकर बनोरी निकालकर समाज को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश दिया।

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