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स्वतंत्रता सेनानी बेगम अनीस क़िदवई व मिथुबेन पेटिट की पुण्यतिथि मनाई

और भारत रत्न अरुणा आसफ अली की जयंती मनाई

सूरजगढ़, राष्ट्रीय साहित्यिक, सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थान आदर्श समाज समिति इंडिया के कार्यालय सूरजगढ़ में समाजसेवी इन्द्र सिंह शिल्ला के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानी व विभाजन की त्रासदी में पीड़ितों की मदद करने वाली महान सामाजिक कार्यकर्ता बेगम अनीस क़िदवई और महात्मा गाँधी की ऐतिहासिक दांडी यात्रा में भाग लेने वाली महान स्वतंत्रता सेनानी मिथुबेन पेटिट की पुण्यतिथि और स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न अरुणा आसफ अली की जयंती मनाई। कार्यक्रम में सर्वप्रथम तीनों महिला स्वतंत्रता सेनानियों के छायाचित्रों पर पुष्प अर्पित किये और आजादी के आंदोलन में उनके योगदान को याद किया। मास्टर रामस्वरूप सिंह व राजपाल सिंह फोगाट और डॉ. प्रीतम सिंह खुगांई आदि वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार और महान सामाजिक कार्यकर्ता बेगम अनीस क़िदवई के बारे में जानकारी देते हुए धर्मपाल गाँधी ने कहा- बेगम अनीस क़िदवई एक लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थी। उन्होंने भारत के खूनी विभाजन को आंखों से देखा और पीड़ितों के पुनर्वास की दिशा में काम किया। विभाजन के समय हुए दंगों में उनके पति का भी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। सब कुछ खोने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अनीस क़िदवई ने दिल्ली आकर महात्मा गाँधी को अपनी दर्द भरी दास्तान सुनाई। विभाजन के समय हुए दंगों से महात्मा गाँधी खुद भी टूट चुके थे। उन्होंने अनीस क़िदवई को शरणार्थी कैंपों में जाकर पीड़ितों की मदद करने के लिए कहा। अनीस किदवई ने शरणार्थी कैंपों में जाकर पीड़ितों की जी जान से खिदमत की और बाद में उन्होंने “आजादी की छांव में” एक किताब लिखी, जिसमें भारत विभाजन का दर्द समेटा गया है। बेगम अनीस क़िदवई दो बार 1956 और 1962 में राज्यसभा की सदस्य भी रही है। स्वतंत्रता सेनानी मिथुबेन पेटिट के बारे में जानकारी देते हुए धर्मपाल गाँधी ने बताया कि मिथुबेन पेटिट का जीवन और मिशन 1920 के दशक में महात्मा गाँधी के राष्ट्रीय आंदोलन के स्वर्ण युग में शुरू हुआ और 1973 में समाप्त हुआ। उन्होंने अपना जीवन गुजरात के आदिवासी गरीबों, दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। गांधीजी का नमक सत्याग्रह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गाँधी के साथ उन्होंने दांडी यात्रा में भाग लिया। अपनी भक्ति और निस्वार्थ सेवा से वह भारत के गरीब लोगों के लिए खुशी, आशा, प्रगति और ज्ञान का स्रोत बन गईं। मिथुबेन पेटिट उन लोगों में से थीं, जिन्होंने देश की आजादी के बाद सत्ता छोड़ दी थी। वह राजनीति से दूर रहीं और गांधीजी के निस्वार्थ सेवा के सिद्धांत का पालन किया। मिथुबेन पेटिट ने मारोली में एक आश्रम स्थापित किया, जिसे कस्तूरबा वनात शाला कहा जाता है। आश्रम में गरीब परिवारों के बच्चों, आदिवासी व हरिजन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए फिशर लोक कताई, कार्डिंग, बुनाई, डेयरी खेती और सिलाई में डिप्लोमा कोर्स पढ़ाया जाता है। उन्होंने मानसिक रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए उसी नाम का एक अस्पताल भी खोला था। 1961 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 16 जुलाई 1973 को उनकी मृत्यु हो गई। ऐसी महान विभूतियों को हम नमन करते हैं। शिक्षाविद् राजपाल सिंह फोगाट ने भारत रत्न अरूणा आसफ अली के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा- स्वतंत्रता सेनानी अरूणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को अविभाजित पंजाब के कालका नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई आंदोलनों में भाग लिया। महात्मा गांधी के आह्वान पर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अरुणा आसफ अली ने सक्रिय रूप से भाग लिया। जब देश के प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गये तो उन्होंने अद्भुत कौशल का परिचय दिया और 9 अगस्त के दिन मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में तिरंगा झंडा फहराकर अंग्रेजों को देश छोड़ने की खुली चुनौती दे डाली। क्रांतिकारी महिला अरूणा आसफ अली का जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ है। अरूणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी रहीं हैं। उन्हें दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर होने का गौरव भी हासिल है। अरुणा आसफ अली को सन् 1964 में लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 में जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और इंदिरा गाँधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आदर्श समाज समिति इंडिया परिवार महान स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करता है। इस मौके पर समाजसेवी इंद्र सिंह शिल्ला, शिवदान सिंह भालोठिया, मास्टर रामस्वरूप सिंह आसलवासिया, मनोहर लाल जांगिड़, राजपाल सिंह फोगाट, डॉ.प्रीतम सिंह खुगांई, धर्मपाल गाँधी, सुनील गाँधी, अंजू गाँधी आदि अन्य लोग मौजूद रहे।

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