दांता बस उद्योग के जन्मदाता जनाब मौलाबक्स चौबदार थे
दांतारामगढ़(लिखासिंह सैनी) कस्बे के दांता ग्राम के मोटर उद्योग की कहानी करीब 83 वर्ष पूर्व सन् 1937 से शुरू होती हैं । तत्कालीन ठाकुर गंगासिंह व केशरीसिंह अपनी सुविधा के लिए एक फोर्ड कार गांव में लाये थे। गाड़ी तो आ गई पर प्रश्न इसे चलाने का था । इसके लिए एक स्थानीय युवक मौलाबक्स चौबदार को ड्राइविंग के प्रशिक्षण के लिए बम्बई भेजा गया । मौलाबक्स चौबदार दांता मोटर उद्योग के पितामह कहे जा सकते है। सुदर्शन-सुवदन गौरवर्ण गठीले शरीर का जवान मौलाबक्स ड्राइवर, फोर्ड कार और उसमें बैठे ठाकुर गंगासिंह जिधर से निकलते गांव के लोग खड़े हो जाते । चर्चे हुए गाड़ी के, अपने आप चलती है, सरसराती हुई, फर्राटेदार चाल से। क्या सवारी है ? और चर्चे रहे मौलाबक्स के, क्या ठाठ से बैठकर गाड़ी चलाते । दो चार बार तेजी से घर्र-घर्र की आवाज, गांव भर में पेट्रोल की तेज गंध, गाड़ी देखकर जानवरों की दौड़, पीहू-पीहू करके एक साथ मोरों का बोलना सब कुछ नया था, कौतुहल पैदा करने वाली गाड़ी जिधर से निकलती उसी की चर्चा करते । ड्राइवर होने के कारण मौलाबक्स गाड़ी के बारे में बहुत कुछ जानकार हो गये । आजादी से पहले सन् 1946 में मौलाबक्स चौबदार कलकत्ता से 450 रूपए में सवारी गाड़ी खरीद कर लाये थे । उस समय गाड़ी को देखने सैंकड़ों लोग आए थे । बाबा परमानंद जी ने मौलाबक्स को प्रसाद में एक रोटी दी थी ओर कहां था की कभी भी रोटी ओर रोजगार की कमी नही रहेगी । दांता गढ़ की गाड़ी आर.जे.वी. 201 भी मौलाबक्स को दे दी गई थी । उसी समय से दांता बस उद्योग के लिए जाना जाने लगा । मौलाबक्स के पुत्र फतेह मोहम्मद चोबदार व पौत्र अश्कर,ईकबाल आदि भी आज भी मोटर गाडियों का ही कामकाज कर रहे है । दांता में समय और आवश्यकता अनुसार गाड़ियों की संख्या बढ़कर अब तक सैंकड़ों पार कर चुकी हैं । चौबदारों में से ही दांता में इस्लाम धर्म में सबसे पहले हज यात्रा पर वकील हाजी मोहम्मद इलाही चौबदार थे । उन्होंने आज से एक सौ एक साल पहले सन् 1915 में बहुत कम खर्च में हजयात्रा की । उन्हीं दिनों दूसरे स्थान पर हाजी इमाम बक्स लुहार ने हजयात्रा की थी ।