झुंझुनूलेख

पर्यावरण, स्वच्छता व जल को बनाना होगा जन आंदोलन – केके गुप्ता

संदर्भ – विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून 2023

झुंझुनू, आज आमजन महंगाई तथा बीमारियों से जूझ रहा हैं परंतु वह यह भूल गया है कि जीने के लिए पर्यावरण अति आवश्यक है। प्रकृति ने भी अपना रंग बदला हैं, हम मुख्य समस्या से भटक कर अन्य सुविधा एवं विकास में इतने व्यस्त हो गए कि दूसरा कुछ देख ही नहीं पा रहे हैं। हम हमारे व्यक्तिगत स्वार्थ एवं स्वयं के लाभ के अलावा कुछ सोच नहीं पा रहे हैं। बिगड़ते पर्यावरण का शिकार आमजन हो रहा हैं जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण, स्वच्छता एवं शुद्ध जल को जन आंदोलन बनाना होगा। यह उद्गार स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण भारत सरकार एन एस एस सी के सदस्य तथा पूर्व स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर (राजस्थान सरकार) केके गुप्ता ने व्यक्त किए हैं।

उन्होने बताया कि हर व्यक्ति के सुखद जीवन के लिए शुद्ध पर्यावरण का होना बहुत आवश्यक हैं। यहां हमें यह समझना पड़ेगा कि केवल वृक्षारोपण से ही शुद्ध वातावरण नहीं बनाया जा सकता या हम इस बिगड़ते हुए पर्यावरण की लड़ाई नहीं जीत सकतें। इसके लिए बहुत सारी बातें हैं जिन पर हमें गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण मनाया जाता है। 100 से अधिक देशों के लोग इस दिन को मनाते हैं। इसके अलावा, विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा चलाया जाता है। वर्ष 1973 से, ऊपर से इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य जागरुकता फैलाना था। जागरूकता हमारे पर्यावरण के संरक्षण के बारे में थी। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को रोकने के लिए विभिन्न निवारक उपाय भी करें। चूंकि हम सभी जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग हमारे पर्यावरण की बर्बादी का मूल कारण है। इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पर्यावरण की रक्षा करें और उस सारे शोषण को रोको जो इसे नष्ट कर रहा है। क्योंकि अंत में, यह हमारे अस्तित्व और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी मूलभूत आवश्यकता है।

गीला और सूखा कचरा अलग-अलग संग्रहित कर उसका निस्तारण करें

गुप्ता ने बताया है कि कचरा पर्यावरण के लिए बहुत नुकसानदायक होता है। इसके लिए स्वच्छ भारत मिशन के तहत गीला और सूखा कचरा के अलग-अलग संग्रहण के लिए नियम बनाए गए हैं और इसके लिए अलग-अलग कचरा पात्र रखने होंगे। नगर वासियों का भी यह कर्तव्य बनता है कि अपने घरों में निकलने वाले गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग एकत्र करके रखें और कचरा संग्रहण वाहन में ही कचरा जमा कराएं। नगर निकाय का यह दायित्व बनता है कि यह संग्रहित कचरे का उचित वैज्ञानिक स्तर पर सेग्रीकेशन का कार्य करते हुए कचरे का निस्तारण करें और गीले कचरे से खाद बनाकर राजस्व प्राप्ति के स्त्रोत में भी वृद्धि की जा सकती है। जगह-जगह कचरे के पहाड़ नहीं बनने चाहिए क्योंकि जहां पर कचरा रहेगा वहां पर कई प्रकार के कीड़े उत्पन्न होंगे गीला और सूखा कचरा एक साथ होने से उसमें आग लगने पर जो विषैला धुआं उठता है वह आसपास के वातावरण को भी दूषित करते हुए बीमारियां फैलाता है। इन कचरे पहाड़ों से धरती का जल भी दूषित होगा क्योंकि जब वर्षा आएगी तब वर्षा का जल कचरे के साथ में मिलकर धरती के अंदर प्रविष्ट करेगा और धरती का जल भी विषैला हो जाएगा। घरों से निकले हुए कचरे में प्लास्टिक नहीं होना चाहिए क्योंकि कई बार कचरे में आग लगा दी जाती है और उसमें शामिल प्लास्टिक भी लंबे समय तक जलता रहता है जिससे विषैली गैसें उत्पन्न होती है जिससे मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

तंबाकू और सिगरेट से भी वातावरण होता है दूषित और जानलेवा भी है

गुप्ता ने बताया कि सिगरेट में निकोटीन होने के कारण, इसके सेवन से हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) की संभावना बढ़ जाती है। निकोटीन हानिकारक रसायन है, इसकी वजह से ब्लड प्रेशर बढ़ने के साथ-साथ कई अन्य बीमारियां हो सकती हैं। धूम्रपान की वजह से रक्त, ब्लैडर, सर्विक्स, फेफड़ों, लिवर, गुर्दे, ग्रसनी, पैनक्रियाज़, मुंह, गले, लेरिंक्स, किडनी, कोलन, रेक्टम, पेट का कैंसर भी हो सकता है। फेफड़ों में होने वाले 10 प्रकार के कैंसर में से 9 प्रकार के कैंसर धूम्रपान की वजह से ही होते हैं। धुएं रहित तम्बाकू जैसे तम्बाकू चबाने से ग्रसनी, मुंह और गले का कैंसर हो सकता है। सिगरेट का सेवन करने वाला व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के साथ तो खिलवाड़ करता ही है लेकिन अपने पास में खड़े किसी स्वस्थ व्यक्ति को भी सिगरेट के जानलेवा धुएं के साथ उसे भी मौत के मुंह में डाल देता है। वही किसी व्यक्ति द्वारा गुटका आदि खाकर सड़क पर थूका जाता है तो उसे भी गंदगी फैलती है और वातावरण भी दूषित होता है।

लकड़ियों को नहीं जलाएं इससे होता है वायु प्रदूषण

गुप्ता ने कहा है कि आज भी गांवों में लकड़ियों पर भोजन बनाया जा रहा है जिसे रोकना आवश्यक है। हमें बहुत बड़े स्तर पर लकड़ियों को नहीं जलाना चाहिए क्योंकि इससे निकलने वाले धुएं से वायु बहुत प्रदूषित होती है। जिसे हर घर में बायोगैस प्लांट लगाकर गोबर से गैस बनाकर रोका जा सकता है। पेड़-पौधे वातावरण की कार्बन डाईऑक्साइड को खींचकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इसलिए वायु प्रदूषण को रोकने के सबसे अहम उपायों में से एक है बड़ी संख्या में पेड़-पौधे लगाना। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण वायु प्रदूषण की स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए और कड़ाई से इसका पालन किया जाना चाहिए। जंगलों में लगने वाली आग के त्वरित नियंत्रण के उपाय किए जाएँ। प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को रोकना होगा अगर आवश्यकता है तो ऐसी तकनीकों का उपयोग करना, जिससे कम से कम धुँआ उत्सर्जित हो।

कोविड काल की पुनरावृत्ति नहीं हो इसलिए पर्यावरण संरक्षण है जरूरी

गुप्ता ने कहा कि हम सभी भारत वासियों ने वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना बीमारी का कालखंड देखा है। कोरोना बीमारी के समय ऑक्सीजन की कमी के कारण लाखों देशवासियों की अकाल ही मृत्यु हो गई। उस समय ऑक्सीजन का महत्व हम सभी को पता चला कि मानव के लिए ऑक्सीजन से महत्वपूर्ण कुछ नहीं है और इसके संरक्षण के लिए पर्यावरण का शुद्ध होना अति आवश्यक है। हमें इस बात के लिए भी सचेत रहना होगा कि कोविड काल की पुनरावृति कभी नहीं हो तथा हर व्यक्ति को कम से कम पांच पेड़ जो कि कम से कम 10 फीट से अधिक की ऊंचाई के हो लगाने चाहिए जिससे हमें अच्छा और शुद्ध पर्यावरण मिल सके।

कार्बन उत्सर्जन से निकलने वाला धुआं है जानलेवा

गुप्ता ने कहा कि अर्थव्यवस्था को गति देने और आबादी के लिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले के उपयोग पर एकाएक अंकुश लगाना मुश्किल है। लिहाजा, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारत की भागीदारी सात फीसद थी, जो अब घटनी शुरू हो गई है। इसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वैश्विक औसत का करीब चालीस फीसद है। यह इसलिए संभव हुआ, क्योंकि एलईडी बल्ब और सौर ऊर्जा के उपयोग पर बल दिया गया। ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में गैस सिलेंडर मुफ्त दिए गए। इससे लकड़ी के ईंधन पर ग्रामीण भारत की निर्भरता कम हो गई। अगर कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण बना रहता है, तो भारत प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ता दिखाई देगा। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि पिछले दिनों ग्रीनपीस की रिपोर्ट में बताया गया था कि विश्व के तीस सर्वाधिक प्रदूषित नगरों में से बाईस भारत में हैं। औद्योगिक संयंत्रों और वाहनों से निकलने वाला धुआं इस प्रदूषण की मुख्य वजह हैं। हालांकि भारत जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से बचने के लिए इलेक्ट्रानिक कार, सौर और वायु ऊर्जा तथा न्यूनतम कार्बन पैदा करने वाली प्रौद्योगिकी पर लगातार जोर दे रहा है। यहां हमें हमारे उद्योगों एवं घरों को सौर ऊर्जा से जोड़ना होगा तथा कोयला आधारित बिजली बनाने की पद्धति को धीरे-धरे कम करना होगा ताकि देश के बिगड़ते वातावरण को सुदृढ़ किया जा सके और प्रदूषण को रोका जा सके।

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