शहीद दिवस विशेष
गांधी जी से मिले थे चिराणा के वैद्यराज पंडित रामप्रताप शर्मा
विदेशी वस्त्रों की होली जलाने के लिए महात्मा गांधी को दी थी अपनी माचिस
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सहयोगी, आयुर्वेद-संस्कृत शिक्षा के प्रणेता रहे शर्मा
झुंझुनूं, झुंझुनूं जिला हमेशा से ही वीरों, शहीदों, दानदाताओं की भूमि रहा है। ऐसे में स्वतंत्रता संग्राम से भी यहां के अनेक लोग जुड़े। इनमें कुछ जहां गरम दल से संबंध रखते थे, वहीं नरम दल यानी महात्मा गांधी के अहिंसा पथ पर भी अनेक लोगों ने चलकर स्वतंत्रता रूपी महायज्ञ में अपनी आहूति दी। जिले की उदयपुरवाटी तहसील के चिराणा गांव के पंडित रामप्रताप शर्मा भी ऐसी ही शख्सियत थे। आयुर्वेद के प्रकांड ज्ञाता और बतौर आयुर्वेदाचार्य अपनी आजीविका चलाने वाले रामप्रताप शर्मा अपनी युवावस्था से ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए। उनके पौत्र और वर्तमान में आयुर्वेद विभाग से उपनिदेशक पद से सेवानिवृत हुए डॉ. चंद्रकांत गौतम बताते हैं कि पंडित रामप्रताप शर्मा आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कविराज गणनाथ सेन के पास कलकत्ता गये हुए थे।
उन्ही दिनों वहां पर अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन चल रहा था। एक दिन जब वे अपनी नियमित पूजा पाठ करके लौट रहे थे, तभी मुख्य मार्ग पर लोग विदेशी सामान की होली जलाने के लिए सामान लाकर डाल रहे थे। अंग्रेज पुलिस के भय के कारण बाजार बंद हो गया था, लोगों में भय का वातावरण बना हुआ था। पंडित रामप्रताप शर्मा भी उस आन्दोलन में शामिल हो गये। विदेशी सामान की होली जलाने के लिए मुख्य रूप से महात्मा गांधी आने वाले थे। थोड़ी देर में महात्मा गांधी आए और सभी आंदोलनकारी विदेशी सामान की होली जलाने के लिए तैयार थे, लेकिन अचानक आयोजनकर्ता असहज हो गये। क्योंकि आयोजन समिति के कार्यकर्ता दियासलाई (माचिस) लाना भूल गए। पुलिस के भय के कारण बाजार बंद हो गया था, ऐसे में बड़ा सवाल यह था कि अब माचिस कहाँ से लाई जाए। तभी अपनी पूजा सामग्री में से माचिस निकाल कर वैद्यराज पंडित रामप्रताप शर्मा ने महात्मा गांधी को दी और महात्मा गांधी ने शेखावटी की चिन्गारी से बंगाल की भूमि पर विदेशी सामान की होली जलाई। चंद्रकांत गौतम बताते हैं कि वैद्यराज पंडित रामप्रताप शर्मा अपने जीवनकाल में बताते रहे कि इस अवसर पर उन्होंने महात्मा गांधी को स्पर्श भी किया और चर्चा भी। महात्मा गांधी जी से चर्चा करने का विद्यार्थी जीवन का उनका प्रथम अवसर था। बकौल गौतम पंडित रामप्रताप शर्मा यह प्रसंग सुनाते वक्त बहुत ही रोमांचित हो जाया करते थे। उन्होंने वहीं से महात्मा गांधी से प्रेरित होकर ग्रामीण भारत की सेवा का संकल्प कर लिया। जिसके चलते आयुर्वेद की शिक्षा पूर्ण होने के बाद उन्होंने अच्छे वेतनमान को ठुकराकर ग्रामीण भारत की सेवा के लिए चिराणा ग्राम में ‘श्री महावीर आयुर्वेद औषधालय’ चिराणा की स्थापना की। वे श्री महावीर आयुर्वेद औषधालय चिराणा का निशुल्क सेवा प्रकल्प लोहार्गल में भी चलाते रहे।
संस्कृत शिक्षा में भी अहम योगदान:
शर्मा की चिकित्सा से स्वास्थ्य होने पर नवलगढ़ के सेठ जी रामरख दास परसरामपुरिया ने चिराणा में श्री चिराणा विद्यालय चिराणा का भवन वर्ष 1943 में बनवाया, जिसके बालु सिंह शेखावत ने भूमि प्रदान की। शर्मा ने 1945 में सांग्वेद संस्कृत पाठशाला स्थापित कर इसका विस्तार करते हुए कालांतर में इसे सांग्वेद संस्कृत महाविद्यालय का स्वरूप प्रादान किया। अपनी वृद्वावस्था में इस संस्था के भवन को पूरे स्टाफ के साथ उन्होंने राजस्थान सरकार को समर्पित कर दिया। तब से ही झुन्झुनू जिले का प्रथम राजकीय महाविद्यालय चिराणा गया। जिसमें कक्षा प्रथम से शास्त्री (बी. ए.) तक की पढाई अनेक वर्षों तक एक साथ होती रही, इस वजह से कक्षा प्रथम से लेकर स्नातक तक के सभी छात्र कहते थे कि हम कालेज में पढते हैं। यह चलन काफी समय तक प्रचलन में रहा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित:
संस्कृत शिक्षा और आयुर्वेद के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के चलते पंडित रामप्रताप शर्मा को 1989 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने संस्कृत दिवस के मौके पर सूचना केन्द्र जयपुर में सम्मानित भी किया।