कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए
झुंझुनू ,श्री गोपाल गौशाला के तत्वाधान में 23 जुलाई गुरुवार को तीज माता की सवारी निकालकर मेला नहीं आयोजित किया जाएगा। गौशाला के अध्यक्ष ताराचन्द गुप्ता भोडक़ीवाला एवं सचिव सुभाष क्यामसरिया ने बताया कि श्री गोपाल गौशाला पदाधिकारियों द्वारा निर्णय लिया गया है कि इस बार कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा अहतियात बरते जाने के क्रम में तीज माता की सवारी नहीं निकाली जाएगी। किदवन्ती कथा के अनुसार तीज श्रावण शुक्लपक्ष के तीसरे दिन मनायी जाती है। इस दिन भगवती पार्वती सौ वर्षो की तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिलि थी इस दिन मां पार्वती की पूजा की जाती है। राजस्थान में एक बड़ी ही प्यारी लोक कहावत प्रचलित है। तीज तीवारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर…यानी सावनी तीज से आरंभ पर्वों की यह सुमधुर श्रृंखला गणगौर के विसर्जन तक चलने वाली है। सारे बड़े त्योहार तीज के बाद ही आते हैं। रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, श्राद्ध-पर्व, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली का पंच-दिवसीय महापर्व आदि…तीज माता की भव्य सवारी निकाली जाती है जिसको देखकर मन खुशी से झूम उठता है। हमारो प्यारो रंगीलो राजस्थान हमेशा से ही तीज-त्योहार, रंग-बिरंगे परिधान, उत्सव और लोकगीत व रीति रिवाजों के लिए प्रसिद्ध है। तीज का पर्व राजस्थान के लिए एक अलग ही उमंग लेकर आता है। जब महीनों से तपती हुई मरुभूमि में रिमझिम करता सावन आता है तो निश्चित ही किसी उत्सव से कम नहीं होता। श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन श्रावणी तीज, हरियाली तीज मनाई जाती है, इसे मधुश्रवा तृतीया या छोटी तीज भी कहा जाता है। तीज के एक दिन पहले (द्वितीया तिथि को) विवाहित स्त्रियों के माता-पिता (पीहर पक्ष) अपनी पुत्रियों के घर (ससुराल) सिंजारा भेजते हैं। जबकि कुछ लोग ससुराल से मायके भेजी बहु को सिंजारा भेजते हैं। विवाहित पुत्रियों के लिए भेजे गए उपहारों को सिंजारा कहते हैं, जो कि उस स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है। इसमें बिंदी, मेहंदी, सिन्दूर, चूड़ी, घेवर, लहरिया की साड़ी, ये सब वस्तुएं सिंजारे के रूप में भेजी जाती हैं। सिंजारे के इन उपहारों को अपने पीहर से लेकर, विवाहिता स्त्री उन सब उपहारों से खुद को सजाती है, मेहंदी लगाती है, तरह-तरह के गहने पहनती हैं, लहरिया साड़ी पहनती है और तीज के पर्व का अपने पति और ससुराल वालों के साथ खूब आनंद मनाती है।