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कृषि अधिकारी व पर्यवेक्षकों ने दी चेतावनी

टिड्डियो के बारे में दी सामान्य जानकारी

श्रीमाधोपुर,[महेंद्र खडोलिया] कस्बे के पंचायत समिति में कृषि विभाग के कृषि अधिकारी बीएल वर्मा आसपुर ने आमजन व किसानों को चेताया कि टिड्डी दल बाजोर के पास पहुंच चुका है। उन्होंने बताया कि ठीकरिया, खण्डैला, रींगस, लापुंवा, होद, सचेत रहे एक टीड्डीयोंं का दल सीकर उप जिले के बाजोर क्षेत्र के आस – पास चल रहा है जो आपके क्षेत्र मे आ सकता है, आप अपने समस्त स्टाफ को अलर्ट रखे एंव टिड्डी मुवमेंट की सुचना शीघ्र कन्ट्रोल रुम को भी देवें।साथ में रहे कृषि प्रवेशक सुमन यादव, अंजू बराला, रामसहाय जूण, दारा सिंह आदि।
यह दी जानकारी – इनके अण्डे चावल के समान नांरगी-पीले रंग के होते है जो बाद में भूरे हो जाते है। टिड्डिया नम रेतीली, दोमट मिट्टी में 10-15 सेन्टीमीटर गहरा गड्ढा बनाकर समूह में 40-120 अण्डे देती है। जहाँ अण्डे दिये जाते है वहाँ सुराख दिखाई देते है। गड्ढे के मुँह पर सफेद झाग से नजर आते है। यह झागदार द्रव टिड्डी अपने शरीर से निकालती है। जिससे गड्ढों मे पानी नहीं जाता है। अण्डों से शिशु सामान्यतः तापमान एवं नमी की उपलब्धी के अनुसार 10 से 30 दिन मे निकलते है।
शिशु , होपर्स – नवजात शिशु एक सफेद मोटी पर्त से ढका रहता है। मोटी परत हटने के 10 सेकण्ड से 5 मिनट बाद शिशु का रूपांतरण होना शुरू हो जाता है।शिशु से वयस्क बनने तक रूपांतरण की 5 अवस्थाएं होती है। इनका रंग लगभग काला होता है। शिशु से वयस्क बनने में गर्मियों में 20-25 दिन का समय लगता है।
वयस्क टिड्डी- पांचवीं अवस्था के बाद छठी अवस्था को प्रोढ कहते है। इस अवस्था में इनका रंग सामान्यतः गुलाबी होता है। शुरू में इनके पंख ,सिर व शरीर के भाग कोमल होते है जो बाद में उडने की अवस्था तक काफी कठोर हो जाते है। प्रोढ होने पर मादा का उदर भाग काफी बडा व पीला हो जाता है। नर का रंग मादा की अपेक्षा ज्यादा चमकदार व पीला होता है। प्रोढ टीड्डी का आकार नहीं बढता जबकि वजन बढता है। परिस्थितियों की अनुकूलता के अनुसार शिशु 4 सप्ताह में वयस्क हो जाते है।
अण्डे देना – मैथुन के बाद मादा टिड्डिया दो दिवस के भीतर अण्डे देने की प्रक्रिया प्रारंभ कर देती है। उपयुक्त स्थान खोज कर नम – रेतीले, दोमट मिट्टी में 10-15 सेन्टीमीटर की गहराई पर अण्डे देती है। इस प्रक्रिया में डेढ़ से दो घण्टे लगते है।
नुकसान – टिड्डिया सभी तरह की वनस्पति को खाती है। प्रोढ टिड्डिया प्रतिदिन अपने भार के बराबर वनस्पति खाती है। फसलों की पत्तियाँ नष्ट हो जाने से पैदावार बिल्कुल नहीं होती है। हमले के समय यह पूरे समय पूरे दिन और रात्री मे काफी देर तक खाती रहती है।
प्रजनन क्षेत्र- एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में समर्थ होने की प्रवृत्ति के कारण टिड्डिया रेगिस्तान के किसी न किसी भाग में हर समय प्रजनन करती रहती है। इनके आक्रमण क्षेत्र का 50 प्रतिशत क्षेत्र प्रजनन क्षेत्र ही होता है। सर्दी एवं बंसत ऋतु के पूर्वाद्ध में भी टिड्डियो का प्रजनन होता है। मई, जून मे टिड्डियो का दल पाकिस्तान की सीमा से होता हुआ भारत आता है। दूसरा दल वर्षा के आगमन के साथ ही जुलाई मे आता है। आजकल तो यह कभी आ जाता है। वर्षा के कारण यह दल राजस्थान और आस- पास के रेगिस्तानी भागो मे अण्डे देने के लिए इकट्ठा हो जाता है। यहां टिड्डिया दो तीन बार अण्डे देती है।इससे अगस्त मे इनका झुण्ड तैयार हो जाता है।
टिड्डियो की रोकथाम के लिए कारगर, असरदार और सफल नियंत्रण उपाय संचालित करने और भावी गतिविधियों के बारे मे सीकर जिले के उच्चाधिकारियों ने समय समय पर दिशानिर्देश जारी किए गये है इनके निर्देशो की पालना करते हुए सफल नियंत्रण कार्य करे।

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