गुप्त नवरात्रा पर विशेष
दांतारामगढ़, [लिखा सिंह सैनी ] दांता राजपरिवार द्वारा निर्मित गढ़ वाले नाग पर्वत पर पहाड़ी की खोह में स्थित काली माता मंदिर भी ग्राम दांता की प्राचीन धरोहरों में से एक है। मां काली का दक्षिणी मुंखी आस पास के क्षेत्र का एकमात्र मंदिर है । तत्कालीन राजपरिवार द्वारा मां कालिका की पूजा अर्चना नियमित रूप से की जाती थी । मां जीण भवानी के साथ ही मां काली के उपासक भी थे। हर नवरात्रि में करणी माता मंदिर माला में अनुष्ठान व पूजा के साथ ही राजपरिवार मां काली के मंदिर में भी पूर्ण विधि-विधान के साथ पुजा अर्चना करवाकर मां काली से ग्राम की रक्षा की कामना करते थे। राजपरिवार के सदस्यों के सहयोग से पुजारी परिवार (व्यास परिवार) पूर्ण निष्ठा के साथ कई पीढ़ियों से काली मां की पूजा अर्चना कर हर चैत्र शुक्ल अष्टमी अश्विनी अष्टमी को भव्य रात्रि जागरण का आयोजन करते हैं । मंदिर सालों पुराना है व पहाड़ी की खोह में प्रकृति द्वारा निर्मित एक अद्भुत नजारा है। भक्तों व जागरण के लिए एक तिबारी बनी हुई हैं । मंंदिर के दोनों तरफ प्राचीन दो जाल के वृक्ष है जो आज भी वैसे के वैसे ही है। पहाड़ी पर मंदिर जानें के लिए प्राचीन करीब 80 सिडियां बनी हुई हैं।काली माता मंदिर के पास प्राचीन भैरों जी का मंदिर भी बना है। तलहटी में सिडियों के पास भगवान विष्णु का चारभुजा का मंदिर भी बना हुआ है।काली माता मंदिर को विस्तार रूप देकर बाद में अन्य सुविधाओं से युक्त किया गया है। इस मंदिर में छत के रूप में लगे पत्थर चमत्कारी रूप से हैं किसी सहारे के बगैर लगे हुए हैं। तलहटी में पुजारी परिवार के साथ ही अन्य परिवार भी निवास करते हैं। पुजारी परिवार के सदस्य राजेश कुमार, सुनील कुमार, प्रदीप कुमार व्यास ने बताया कि मां काली के मंदिर निर्माण के समय से ही हमारे पुर्वज आज तक पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार मां काली की पूजा अर्चना नियमित करते हैं। मंदिर के नीचे रींगस रोड पर करीब 50 बीघा जमीन है जिसकी देख रेख एवं खेती पुजारी परिवार करता है। ग्राम दांता के निवासियों में मां काली के प्राचीन मंदिर का बहुत महत्व है। भक्तगण महाकाली को नारियल प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगते एवं प्रवासी कलकत्ता, महाराष्ट्र, असम आदि जगहों से आकर जात जडुला करते हैं।