एक निर्जीव की व्यथा
दांतारामगढ़ [लिखा सिंह सैनी ] मै देवा की डूगरी निवासी दांता आसपास के डुगरों में इकलौती एक ऐसी डूगरी हूं की मेरा अकेली का ही खनन हो रहा है । मेरी खसरा संख्या 1801 पूर्व दिशा का हिस्सा वन विभाग के अन्तर्गत आता है 1802 पश्चिम दिशा का हिस्सा खनन विभाग के अंतर्गत आता है । खनन विभाग मुझे हर दो साल के लिए मात्र पांच छः हजार रुपये में बीपीएल परिवारों को लीज पर दे देता है । आपकी आनेवाली पीढ़ी मुझे नही देख सकेगी क्योंकि मेरे से हर दिन हजारों टन पत्थर निकाल कर किसी मंदिर, मस्जिद या आपके घरों की निम में दबा दिया जाता है। जब मेरे मस्तिष्क पर एलएनटी जैसी बड़ी मशीन चढ़कर मेरे अंगों के टुकड़े टुकड़े करती है तब मेरें को बहुत तकलीफ होती है । कुछ दिनों पहले मेरे को बारुद से भी तोडाफ़ोड़ा गया परन्तु मेरे आसपास के पड़ोसियों को उसे नुकसान पहुंचा तो बारुद से तोड़फोड़ बंद कर दी । जनप्रतिनिधियों व मेरे पड़ोसियों ने मेरे खनन पर रोक लगाने के लिए स्टे लाने की बहुत कोशिश की परन्तु खनन विभाग के आगे एक नही चली और स्टे नही मिला। मैं दांता कस्बे के लिए बहुत शुभ थी क्योंकि मेरा दक्षिण दिशा का हिस्सा उपर है जो वास्तु शास्त्र के हिसाब से दांता के लिए बहुत शुभ है । फिर भी मेने ऐसा क्या गुनाह किया की मेरे अकेली का ही खनन हो रहा है मेरे साथियों के खनन पर वर्षों से रोक लगी है । मेरे खनन पर अगर रोक नहीं लगी तो मेरा एक दिन इस गांव में से पुरा अस्तित्व ही मिट जायेगा । मेरे को बचाने के लिए सरकार व खनन विभाग से मिलकर रोक लगाई जा सकती है । अगर मेरे गांव के लोग चाहें तो आपकी अपनी देवा की डूगरी दांता सीकर ।