कुछेक नेता छोटे बड़े आयोजनों में पहुंच कर अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहे हैं
दांतारामगढ़, [लिखा सिंह सैनी ] राजस्थान विधानसभा चुनाव में करीब 18 माह शेष है । लेकिन दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में विधायक बनने के इच्छुक नेताओं की हर छोटे – बड़े कार्यक्रमो भले ही अनुपस्थिति नजर कम ही आती रही होगी पर बैनर पोस्टर जरूर नजर आ जायेगे । कुछेक नेता छोटे बड़े आयोजनों में पहुंच कर अपनी पहचान बनाने का प्रयास कर रहे हैं । दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी से टिकट किसको मिलेगा यह तो भविष्य तय करेगा और पार्टी का शीर्ष नेतृत्व किसे उम्मीदवार बनायेगा यह चुनाव के समय ही पता चल पाएगा, किंतु वर्तमान में कई लोग विधायक बनने की दौड़ में लगे हुए हैं। यहां के जातिगत आंकड़ों के साथ साथ अन्य जाति समाज में पकड़ ,आंतरिक सर्वे , दावेदारी करने वाले व्यक्ति की धरातल पर क्या जनाधार है और मतदाताओं में उसका कितना प्रभाव है इस कसौटी पर जो खरा उतरेगा उसे ही प्रत्याषी घोषित किया जा सकता है। परंतु दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल स्थिति गंभीर बनी हुई है । यहां हर वह नेता विधायक बनने के सपने देख रहा है और किसी भी हालत में इस बार मौका छोड़ना नहीं चाहता है। चाहे जनता में उसकी पकड़ हो या ना हो । क्षेत्र में प्रभाव हो या ना हो, और ना ही लोकप्रियता के ग्राफ से मतलब और ना ही जनता से जुड़ाव से लेना देना । लेकिन बैनर पोस्टर के जरिए नेतागिरी चमकाने छोटे मोटे आयोजनों में यदा कदा अपनी उपस्थिति दर्ज करा चर्चा में बने रहकर विधायक बनने की कतार में बनाए हुए हैं । कुछेक नेता ऐसे भी है जिन्हें यह भी मालूम नही कि विधानसभा में कितने गांव है तथा कोनसी सड़क किस गांव में जाती है पर चाहत एक ही है कि विधायक बनना है। इस दौड़ में शामिल लोग महत्त्वाकांक्षा के चलते ग्रुप बनाकर दौड़ रहे है चाहे जनता में पकड़ है या नहीं या उनका कद राजनीति में इतना बड़ा है या नहीं परंतु उन्हें विधायक बनना है ।
दांतारामगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दबदबा रहा है । यहां भाजपा ने एक बार भी अपना खाता नही खोला है कांग्रेस से वर्तमान में यहां से वीरेंद्र सिंह विधायक हैं उससे पहले चौधरी नारायण सिंह यहां से विधायक रह चुके है दांतारामगढ़ विधानसभा क्षेत्र से सबसे लम्बी राजनैतिक पारी विधायक के रूप चौधरी नारायण सिंह ने खेली है जो राजस्थान सरकार में मंत्री, कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष, किसान आयोग के अध्य्क्ष रह चुके हैं । दांतारामगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर गैर कांग्रेसी वोटर्स के रूझान को देखे और समझे तो उन्हें भी समझ नही आ रहा है कि क्या करे, भाजपा से दांतारामगढ़ में हरीश कुमावत के साथ साथ प्रेम सिंह बाजोर, राजेश चेजारा, प्रभु सिंह शेखावत, गजानंद कुमावत, हरि किशन खींचड़, गोविंद सिंह लाम्बा, पवन पुजारी, राजेन्द्र धीजपुरा, ममता सिंह, सुभाष कुमावत जैसे दावेदार अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए थोड़ी बहुत मौजूदगी दर्ज करवाने में लगे हुए है, वही फुलेरा से विधायक निर्मल कुमावत भी अपनी सीट बदल कर दांतारामगढ़ पर अपनी निगाहे टिकाए बैठे है। लेकिन जो टक्कर हरीश कुमावत ने दी थी भाजपा में वैसे कोई नही दे सका लेकिन वो लगातार 3 विधानसभा चुनाव हार चुके है, 2 बार दांतारामगढ़ से, 1 बार नावां से तथा हाल ही में नगरपालिका चुनाव में भी चुनाव हार व उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उनकी टिकट मुश्किल लग रही है लेकिन फिर भी आज कल में कही कही अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे है। इन सारी परिस्थितियों को देखे समझे और जाने तो गैर कांग्रेसी वोटर्स की बात में दम नजर आता है। भाजपा को पहली बार अपना परचम दांतारामगढ़ विधानसभा चुनाव में लहराना है और कांग्रेस को शिकस्त देनी है तो भाजपा सर्व सहमति से एक प्रत्याशी का चयन करके उसका उपयोग भाजपा आलाकमान को करना होगा। वर्ना भाजपा के लिए अंगूर एक बार फिर खट्टे ही होगे । चाहे नेता पोस्टरों के जरिए अपनी राजनीति चमकाये या फिर छोटे बड़े आयोजनों में खूद की उपस्थिति से अपनी पहचान बढाये । यह दिगर है कि हर चुनाव में कांग्रेस के मतों का ग्राफ बढा ही है।