आंखों देखी कानों सुनी, इलेक्शन एक्सक्लूसिव
मेढक एक तराजू पर कैसे तुल सकते हैं!
तरह तरह की मीम्स और चर्चाएं जोरों पर।
सरदारशहर, [जगदीश लाटा ] विधानसभा चुनाव के लिए हुए निर्वाचन के बाद अब परिणाम के बारे में लोगों के चर्चे शुरू हो गये है। गांधी चौक एवं अन्य सार्वजनिक स्थान हो या चाय पानी की दूकान अथवा चोपाटी हो , ” कियां के सुणी , कांग्रेस आसी क निर्दलीय आसी” से बात शुरू होती है जो कोमी एकता व जातिपांत होते हुए मतों के ध्रुवीकरण तक पहुंच कर कथित धोऴिया धन पर जाकर भी जल्दी सी खत्म नहीं होती है।
चुनाव के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में भी चौपाल हो या गुवाड़, सर्द मौसम में भी बस चुनाव परिणाम के बाबत कयासों की गर्माहट जारी है। कोई बस कांग्रेस की निश्चित जीत को ही पकड़े हुए है तो दूसरा त्रिकोणीय मुकाबला मान रहा है वहीं कोई , निर्दलीय जाट प्रत्याशी की जीत की ताल ठोक रहा है तो एक अन्य राज्य में संभावित भाजपा सरकार के कयास से प्रभावित होकर बस भाजपा उम्मीदवार को जिताने की पकड़े हुए है । हालांकि सट्टा बाजार में चुनाव से पहले और बाद में भी कुछ कांग्रेस की निश्चित जीत मानी जाने से भाव लगातार गिरते जा रहे हैं और मंगलवार को कांग्रेस के भाव गिरकर पैंतीस पैसे हो गये। पर किसकी जुबान पकडें , यह तर्क कि मेढक एक तराजू पर कैसे तुल सकते हैं कोम खातिर तो बस एकमात्र जाटों की ओर से ही वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकता है , सट्टा बाजार को धत्ता बताते हुए अप्रत्याशित परिणाम की ओर इशारा करता दिखाई दे रहा है। इस तर्क का पुरातन प्रमाण कथित तौर पर बताया जा रहा है कि 46 साल पहले भी जिले में छह जाट विधायक रह चुके हैं।
हम कोई इन सबकी गारंटी नहीं लेते हैं। केवल आंखों देखी कानों सुनी का विश्लेषण जगदीश लाटा द्वारा किया गया है।