अब आप ही बताइये क्यों ना कहे, वाह ! क्या सीन है…..
सीन – 1 तीसरी आंख की जद में रहेगा अब झुंझुनू में चौथा स्तंभ
सीन – 2 सरकारी कार्यालय के औचक निरीक्षण में कर्मचारी और अधिकारी रहते हैं नदारद
झुंझुनू, एक समय था जब झुंझुनू जिला हर क्षेत्र में अव्वल रहता था लेकिन वर्तमान में झुंझुनू जिला देखा जाए तो महज कागजों में ही अव्वल बनकर रह गया है। झुंझुनू के लोगों को झुंझुनू जिला अग्रणी होने का झुनझुना हर कोई आकर थमा कर चला जाता है। लेकिन इसके बाद और हाल ही मे बने हुए जिले भी पारदर्शिता के मामले में झुंझुनू जिले से कहीं आगे साबित हो रहे हैं। दरअसल आपकी जानकारी के लिए सीन -2 के संदर्भ में बता दें कि झुंझुनू जिला मुख्यालय पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के कार्यालय में हाल ही में तीसरी आंख यानि सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। इसी कार्यालय के कर्मचारियों से मिली जानकारी के अनुसार यह सीसीटीवी कैमरे चार स्थानों पर लगाए गए हैं। जिनमे पत्रकारों का एक कक्ष है वह भी शामिल है लेकिन जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी के कक्ष में सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाया गया है। अधीनस्थ कर्मचारियों के कमरों एवं पत्रकारों के कक्ष में तो कैमरा लगाया गया है लेकिन जिला सूचना जनसंपर्क अधिकारी के कमरे में सीसीटीवी नहीं होना अपने आप में इस प्रकार की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है। वही सीसीटीवी कैमरे से सम्बंधित काम करने वाले लोगो की माने तो इन सीसीटीवी कैमरो में आवाज भी रिकॉर्ड की जा सकती है। इसमें कितनी सत्यता है यह जाँच का विषय है। वही आपको बता दे कि जिस कक्ष में पत्रकार बैठते है उसमे वह अपनी दौड़ धूप की दिनचर्या के बीच अपने फुर्सत के कुछ पल गुजारते है। इस दौरान आपस में हसी मजाक और अपनी निजी जीवन की अंतरंग बाते भी आपस में शेयर करते है। ऐसी स्थिति में इस अघोषित निगरानी को क्यों न निजता का हनन माना जाए। वही अपने मातहत कर्मचारियों एवं अधिकारी पर ही निगरानी तक सिमित होती इस पारदर्शिता के सन्दर्भ में भी इसको देखा जा रहा है।
वही सीन दो के संदर्भ में बात करें तो समय-समय पर जिले के आला अधिकारी के निर्देश पर भी विभिन्न सरकारी कार्यालयो के औचक निरीक्षण किए जाते रहे हैं लेकिन बड़ी संख्या में कर्मचारी और अधिकारी इसमें अनुपस्थित मिलते हैं और ज्यादातर मामलों में तो सरकारी प्रेस नोट में इनका नाम भी सामने नहीं आता है। बानगी के लिए बता दें कि 5 अगस्त को प्रशासनिक सुधार विभाग की जयपुर से आई विशेष टीमों ने सुबह सरकारी कार्यालयो का निरीक्षण किया था तब 63 राजपत्रित अधिकारी एवं 192 कर्मचारी अनुपस्थित मिले थे और इस टीम ने मौके से 73 उपस्थिति पंजिकाएं भी जप्त की थी लेकिन इन अधिकारी और कर्मचारियों के सरकारी प्रेस नोट में नाम उजागर नहीं हुए। लोकतंत्र में चौथा स्तंभ यानी मीडिया को अपने आप में एक प्रकार से सजग प्रहरी के रूप में माना जाता है लेकिन यहां पर तो पहरेदार पर ही पहरे बैठा दिए गए हैं और जो लोग अपने कार्यालय में अनुपस्थित रहते हैं उनके नाम तक सामने नहीं आ पाते। यह इस पारदर्शिता पर बड़ा सवालिया निशान है।
हाल ही में नए बनाए गए जिले की बात करे जिसमे पिछले दिनों नीमकाथाना जिला कलक्टर शरद मेहरा के निर्देशों पर 4 उपखण्डो पर उपखण्ड अधिकारियों व तहसीलदारों द्वारा अधिनस्थ कार्यालयो में औचक निरीक्षण किया गया। नीमकाथाना जिले में सुबह 9ः30 से 10 बजे के बीच राजकीय कार्मिकों की कार्यालय समय पर उपस्थिति की विषय में हुए इस निरीक्षण में कई अधिकारी, एवं कर्मचारी, अनुपस्थित पाए गए। उपखण्ड नीमकाथाना जिसमें जिला मुख्यालय पर राजकीय कार्यालयों एवं विभागों में कुल 18 उपस्थिति पंजिकाएं मौके पर जब्त की। सुबह 9ः 30से 10 बजे के बीच हुए इस निरीक्षण मेें 182 अधिकारी,-कर्मचारी अनुपस्थित मिले। जिसमे सबसे अधिक श्रीमाधोपुर में 101 अधिकारी व कर्मचारी, अनुपस्थित मिले। इन सभी का सूचना एवं जन संपर्क कार्यालय द्वारा प्रेस नोट में बाकायदा नाम भी दिए गए। अभी तक ओवर आल देखे तो पारदर्शिता के मामले में नीमकाथाना भी झुंझुनू से अग्रणी साबित हुआ है।
जयपुर से आई टीमों ने किया निरीक्षण तो 63 राजपत्रित अधिकारी एवं 192 कर्मचारी मिले अनुपस्थित
5 अगस्त को प्रशासनिक सुधार विभाग की जयपुर से आई विशेष टीमों ने सुबह सरकारी दफ्तरों का जब निरीक्षण किया तब 63 राजपत्रित अधिकारी एवं 192 कर्मचारी अनुपस्थित मिले थे। वहीं इन टीमों ने मौके से 73 उपस्थिति पंजिकाएं भी जप्त की थी लेकिन प्रेस नोट में उनके नाम नहीं उजागर हुए थे।
सवाल तो यह भी उठता है…..
समय समय पर झुंझुनू जिले में उपखंड और जिला स्तर पर भी औचक निरीक्षण किए जाते रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। चाहे वह सरकारी कार्यालय हो या अस्पताल। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि होने वाले इन औचक निरीक्षणो के बाद कोई सख्त प्रशासनिक कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाती है जिसके चलते हालात जस के तस बने रहते हैं। वहीं आम आदमी इन सरकारी दफ्तरों की खाली कुर्सियों के दर्शन करके बार-बार मायूस होकर घर को लौट जाता है। यह बात तो बड़े स्तर के सरकारी कार्यालयों की है यदि ग्रामीण क्षेत्रों में देखा जाए तो हालात और भी बुरे हैं। यानी यह जो औचक निरीक्षण किए जाते हैं महज कागजी और दूसरे दिन सिर्फ समाचार की सुर्खियों में ही नजर आते हैं लेकिन धरातल पर आम जनता को इन औचक निरीक्षण से कोई फायदा नहीं मिल पाता। वही आपको बता दें कि जिला स्तर पर तो जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल बीडीके के कई बार औचक निरीक्षण किए जाते रहे हैं लेकिन वहां पर तब स्थिति ऑल इज़ वेल वाली ही मिलती है। लेकिन तत्कालीन संभागीय आयुक्त एवं वर्तमान में प्रभारी सचिव डॉ समित शर्मा ने जब इस अस्पताल का औचक निरीक्षण किया था तो पूरे के पूरे सिस्टम का पोस्टमार्टम कर डाला था और हर किसी ने यही कहा कि वास्तव में निरीक्षण तो इसी को कहते हैं। जबकि डॉ समित शर्मा ने कई बार अधिकारियों और कर्मचारियों को मीटिंग में यह तक भी कहा है कि यह स्थिति तो तब है जब आपको मेरे दौरे का पता चल जाता है यदि अचानक से निरीक्षण हो तो हालत क्या हो वह किसी से छुपे हुए नहीं है लेकिन प्रभारी सचिव की लताड़ भी अब सरकारी अधिकारियों पर काम नहीं कर रही है।