चुरूताजा खबरलेख

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर अब्बास राजस्थानी की मातृ शक्ति को समर्पित कविता

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

औरत का जिस्म महज जिस्म नही ये तो एक किमती गहना है ।
बेटी फिर बहन किसी की दुल्हन से मां तक सफर तय करना है ।
बेटे की चाहत में बेटियों की कुर्बानी देने वाले ये नहीं जानते है ।
इस पेड़ की छाव के नीचे ना जाने कितने रिस्तो को रहना है ।

ये बेटी है तो पूरे घर को अपनी मीठी सी बोली से चहकना है ।
बेटी को ही अपने मां बाबा के आंगन को फूलो सा महकाना है ।
बेटे को जो सहारा और बेटियों को घर का बोझ समझते है ।
जान ले पराई अमानत है कहा ये उसका अपना आशियाना है ।

औरत अगर बहन है तो उसको एक दोस्त का फर्ज निभाना है ।
भाई की ख्वाहिश के लिए बहन को मां बाबा को भी मनाना है ।
जिनको नही पता है की बहन का होना कितना जरूरी होता है ।
बताओ बहन ना होगी तो कलाई पर धागा किस से बंधना है ।

औरत अगर दुल्हन है तो उसको महबूब का घर भी सजाना है ।
दुल्हन बन कर उसे फिर उनकी नस्लों को भी आगे बढ़ाना है ।
वो जो शादी के बाद औरत को अपने पैर की जूती समझते है ।
एक दिन फिर उनकी बहन बेटी को भी पराए घर जाना है ।

औरत अगर मां है तो उसे अपने बच्चो को संस्कार सीखना है ।
बच्चो को उसे इस दुनिया में इंसानियत का पाठ पढ़ाना है ।
आपने ऐश आराम के खातिर जो मां को घर से निकलते है ।
मां की इज्जत ना करने वालो फिर क्यों हमे इंसान बताना है ।

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