रंग बदलती दुनिया में……
बहरोड़ [अलवर] से महिमा यादव की कविता
रंग बदलती दुनिया कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है,मिले अगर भाव अच्छा तो जज भी अपनी कुर्सी बेच देता है….. जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी ..कि जिस बेटी की खातिर बाप अपनी किडनी बेच देता है…..,, .
कोई मासूम लड़की प्यार में कुर्बान है,जिस पर बनाकर विडिओ उसका.. वो प्रेमी बेच देता है…..,, .
ये कलयुग है कोई भी चीज नामुमकिन नहीं इसमें..कली, फल-फूल,पेड़- पौधें सब माली बेच देता है……,, .
किसी ने प्यार में दिल हारा तो क्या हैरत हैं लोगों को, युधिष्ठिर तो जुए में अपनी पत्नी बेच देता है……,, .
कौन कहता हैं कि दिल दो नहीं होते…पति की दहलीज पर बैठी पापा की उस बेटी से पूछो..,कैसे उसका हर सपना दफन होता है….!!!