झुंझुनूं जिले के छोटे से गांव बुडानिया से बडे-बडे काम करने के लिए पैदा हुई है सरोज । आज महिला सशक्तिकरण के इस दौर मे यह शेखावाटी की बेटी किसी परिचय की मोहताज तो नही है, लेकिन जब शिफर से शिखर या फर्श से अर्श तक पहुचने वाली किसी बेटी के बारे मे सुनते है तो बुडानिया की इस लाडली के बारे मे बताना लाजमी हो जाता है। एक साधारण किसान परिवार से निकली सरोज ने अपनी मंजिल तक के रास्ते खुद बनाये हैं। आज की आई पी एस सरोज ने गांव, गली और गोबर से निकल कर अपनी सफलता की दास्तान अपने बुलन्द हौसलों से लिखी है। पुलिस सेवा जैसे मुश्किल कार्यक्षेत्र को सरोज ने चुना ही नही अपितु उसमे वो मुकाम हासिल किया है जो हम फिल्मों मे देखते है। सन् 2014 के गणतंत्र दिवस परेड की इनकी दहाडने वाली कमाण्ड एक तमाचा है उन लोगों के मुह पर जो आज भी बेटियो को कमजोर समझते है। डिप्टी कमीश्नर आॅफ पुलिस सरोज कुमारी अपने मुश्किल दिनों मे भी इक्कीस किलोमीटर की चार हाफ मैराथन दौड महज दो घण्टे मे पूरा कर दिखा चुकी है। कि लडकी होना कमजोरी की निशानी नही है बल्कि शक्ति का प्रतिरूप है। इनके कार्यक्षेत्र मे अपराध करने से पहले अपराधी सौ बार पहले सोचते है। इनके नेतृत्व मे एक दल एवरेस्ट फतह करने के लिए भी जा चुका है। यह दुर्भाग्य ही था जब ये एवरेस्ट पर फाइनल समिट की तैयारी कर रहे थे उसी दिन नेपाल मे तेज भूक्म्प आ गया जिसके चलते इन्हे वापस लौटना पडा। पुलिस जैसे कठोर महकमे रहने के बावजूद सरोज अत्यन्त संवेदनशील भी है, इन्होने सेक्स वर्करो के कल्याण के लिए भी कार्य किया है। परहित सम धरम नही भाई की उक्ति पर ये आज भी कर्मक्षेत्र मे गतिशील है।