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साहस, दिलेरी व भारतीय संस्कृति का प्रतीक थी इंदिरा गांधी – लाम्बा

आज सोमवार को लाम्बा कोचिंग काॅलेज परिसर में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री का जन्म दिवस समरोह पूर्वक मनाया गया। संस्था निदेशक शुभकरण लाम्बा, प्रोफेसर रतन लाल, प्रोफेसर रमेश, नरेन्द्र, प्रोफेसर प्रमोद पूनिया व सेना भर्ती अभ्यार्थियों ने अनके चित्र पर श्रद्धापूर्वक सुमन अर्पित किए और उन्हें श्रृद्धा से स्मरण किया। संस्था निदेशक लाम्बा ने कहा कि उनकी राजनीति में क्रियाशीलता प्रगतिशीलता और प्राचीन भारत की आध्यात्मिकता का समावेश था। यही कारण है भारत उनके नेतृत्व में आगे बैठता गया और उसने वह बहुत कुछ प्राप्त किया जिसका वह हकदार था। श्रीमती गांधी ने अपनी राष्ट्रवादी विचारधारा पर कहा था कि जातिवाद व साम्प्रदायिक्ता बीती हुई दुनिया की विचारधाराएं है जिसका दुनिया में कोई जगह नही हैं। जबकि वर्तमान राजनीति जातिवाद और साम्प्रदायिक्ता को सत्ता में रहने के लिए अपना हथियार मानती है। उन्होनें कहा कि इंदिरा गांधी के नेतृत्व में देश ने पाकिस्तान को युद्ध में न केवल धूल चटाई बल्कि उसके दो टुक्डे़ कर दिए जो मिसाल है जबकि भारत का वर्तमान हुकमरान गौवंश, राममंदिर, हिंदूत्व, पदमावत फिल्म इत्यादि पर अपने ही देश को तोड़ने में लगा हुआ है। प्रोफेसर रतन लाल पायल ने कहा कि इंदिरा गांधी की कार्य करने की रीति-नीति ऐसी थी जिससे गरीबों, शोषितों व पिड़ितों को राहत, संतोष व प्रेरणा मिले व गरीबी, भय व घुटन के माहोल से निकलकर वे स्वतंत्रता, लोकतंत्र व परिवर्तन का एहसास कर सके। जबकि वर्तमान राजनीति गरीब व अल्पसंख्यक वर्ग को भयभीत करने में लगी हुई है। प्रोफेसर प्रमोद पूनिया ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्रीमती गांधी जीवन भर खतरो से खेलती रही और अन्त में देश की एकता व अखण्डता के लिए खतरों की शिकार बन गई। नरेन्द्र ने अपने संक्षिप्त सम्बोधन में कहा कि श्रीमती गांधी हमेशा कहा करती थी ‘‘चिन्ता मत, करो केवल अपना कर्तव्य करो।’’ उन्होनें कहा उपर्युक्त शब्द उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व कृतत्व को प्रकट करते है। प्रोफेसर रमेश ने कहा श्रीमती इंदिरा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम शपथ ले कि हम जाति और धर्म के नाम पर कोई निर्णय नहीं लेगें।

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