जिले में 50 हजार श्रमिकों को मिला रोजगार
सीकर, देश में कोरोना वायरस के प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए समय-समय पर राज्य सरकार एवं भारत सरकार द्वारा लॉकडाउन लगाया गया जिससे लॉकडाउन के दौरान देश में आर्थिक गतिविधियां लगभग समाप्त हो गई। उद्योग धन्धों में लॉकडाउन के समय उत्पादन की गतिविधयां बन्द होने से श्रमिकों को काम मिलना लगभग बन्द हो गया। बड़े-बड़े शहरों में श्रमिकों को जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं रोजी-रोटी व मकान की समस्या हो गई, जिसके कारण श्रमिकों को शहरों से अपने-अपने गांव में पलायन करना पड़ा। इस मुश्किल की घड़ी में श्रमिकों का महात्मा गांधी नरेगा योजना (जिसमें प्रत्येक ग्रामीण परिवार को वित्तीय वर्ष में 100 दिवस का रोजगार पाने की गारंटी व अधिकार है) जीवन का आधार बनी। गांवों के श्रमिकों ने भी इसका पूरा लाभ उठाया। इसी का परिणाम है कि सीकर जिले में महात्मा गांधी नरेगा योजनान्तर्गत पिछले वर्षों के सम्पूर्ण रिकार्ड को तोड़ते हुए 50 हजार श्रमिकों को नियोजित करते हुए रोजगार दिया गया। राज्य सरकार ने भी इस ओर विशेष ध्यान देते हुए प्रवासी श्रमिकों को जॉबकार्ड जारी कर कार्य देने के लिए विशेष अभियान चलाया गया। जिला कलेक्टर यज्ञ मित्र सिंहदेव ने बताया कि प्रवासी श्रमिकों को तत्काल जॉबकार्ड जारी कर कार्य उपलब्ध करवाया जा रहा है। माह जून के प्रथम पखवाड़े में 1422 कार्यों पर 50830 श्रमिक नियोजित किये गये हैं, जो गत 5 वर्षों में सर्वाधिक है। प्रत्येक श्रमिक को वर्ष में योजनान्तर्गत 100 दिवस का रोजगार दिया जाना एवं गांवों में स्थाई प्रकृति की परिसम्पति अर्जित करने का भी मनरेगा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है। राजस्थान में भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए इस योजना की उपयोगिता महत्वपूर्ण हो जाती है। राज्य में अधिकांश इलाके में वर्ष में कृषि क्षेत्र में एक ही फसल होती है तथा पीने के पानी की भी अत्यन्त समस्या है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य भी जल प्रबन्धन एवं प्राकृतिक संसाधन का विकास कर प्रकृति के समीप रहना है। अधिनियम के अन्तर्गत कुल व्यय का 65 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधन एवं जल प्रबन्धन तथा 60 प्रतिशत कार्य कृषि से सम्बन्धित गतिविधियों पर किया जाना अनिवार्य है तथा गांवों में आधारभूत सरंचना के विकास के कार्य भी करवाये जा रहे हैं। गांवों में प्राकृतिक जल संसाधन के पुराने तालाबों का जीर्णाद्वार, बांध निर्माण, नये तालाबों का निर्माण, ग्रामीण क्षेत्र में अधिनियम में वर्णित व्यक्तिगत श्रेणी के कृषकों के खेतों में पशु आश्रय, कुक्कुट आश्रय, बकरी आश्रय, मेड़बन्दी, भूमि समतलीकरण, जलकुण्ड आदि निर्माण कार्य करवाये जाकर कृषकों को भी सम्बल प्रदान किया जा रहा है। इससे श्रमिकों को रोजगार भी मिला है तथा प्राकृतिक एवं कृषि गतिविधयों के कार्य भी सम्पादित हो पा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में ग्राम पंचायत भवन, पटवार घर, खाद्य गोदाम, ग्रेवल व इन्टरलॉक सड़क, आंगनबाड़ी भवन आदि कार्य करवाये जाकर आधारभूत सरंचना का विकास भी किया जा रहा है, जिससे श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार भी प्राप्त हो रहा है तथा स्थाई परिसम्पतियों का सृजन भी हो रहा है। राज्य सरकार द्वारा 100 दिवसीय कार्ययोजना में जिले के गांवो में मुक्तिधाम विकास, विद्यालयों के खेल मैदानों का विकास, चारागाह विकास एवं मॉडल तालाब के लक्ष्य भी आवटित किये गये है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में अन्य आवश्यक सरंचनाओं का निर्माण कर आमजन को समर्पित किया जा सके। जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जे.पी. बुनकर ने बताया कि सीकर जिले में प्रवासी मजदूरों के आने से जॉबकार्ड जारी करने एवं रोजगार उपलब्ध करवाने के साथ ही श्रमिकों को समयबद्ध भुगतान करवाने एवं कार्यों को गुणवत्तापूर्ण सम्पादित करवाया जाना मुख्य चुनौती थी, जिसको समस्त नरेगा में कार्य करने वाले कार्मिकों ने पूर्ण दायित्वों के साथ निर्वहन किया। कार्यों को गुणवत्तापूर्ण सम्पादित करवाने के लिए 270 कार्यों के अभियन्ताओं व प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा औचक निरीक्षण किये गये हैं। कार्यों को प्रोजेक्ट मोड में सम्पादित करवाया जा रहा है ताकि कार्य जनोपयोगी हों तथा लम्बे समय तक स्थानीय जनता को उसका लाभ मिलता रहें। कार्यों पर श्रमिकों को सोसियल डिस्टेंसिंग रखते हुए तथा कोविड-19 महामारी में स्वास्थ्य मंत्रालय व गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाईडलाईन का ध्यान में रखते हुए ही नियोजित किया जा रहा है तथा कार्यस्थल पर मेडिकल किट व अन्य आवश्यक सुविधायें भी उपलब्ध करवायी जा रही है। मनरेगा योजना में प्रत्येक श्रमिक को 100 दिन के 22 हजार रूपये भी मिलेंगे। वर्तमान में मनरेगा योजना में मजदूरी दर 220 रूपये प्रतिदिन भी कर दी गई है। योजना मुख्य रूप से महिला श्रमिकों के सशक्तिकरण का भी मुख्य उदाहरण है क्योंकि महिला श्रमिकों द्वारा किये गये कार्य का उनके खाते में सीधा ही भुगतान किया जा रहा है। योजना से पर्यावरण भी प्रदूषण मुक्त हो रहा है, कृषकों के खेतों में भी काम हो रहा है, ग्रामीण क्षेत्र में आधारभूत अवसरंचना का भी विकास हो रहा है तथा भूमिगत जलस्तर को बढ़ाने के भी कार्य हो रहे हैं। लॉकडाउन के बीच जहां अन्य क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएं कम हुई है, वहीं महात्मा गांधी नरेगा योजना में रोजगारों का सृजन हो रहा है, जिससे यही प्रतीत होता है कि लॉकडाउन के इस कठिन व संकट के दौर में मनरेगा जैसी योजना ही श्रमिकों के जीवन का आधार है।