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धूमधाम से मनाया सायर मां का 93वां जन्मोत्सव

सैकड़ों भक्तों ने किए श्री मां सायर के दर्शन, धोक लगाकर मांगी मन्नतें

दांतारामगढ़, [प्रदीप सैनी ] करणी कोट पर स्थित श्री सायर मां का 93वें जन्मोत्सव का आयोजन मंगलवार को बड़ी धूमधाम से मनाया गया। पुजारी बलबीर सिंह हापावत ने बताया कि दयामयी भगवती स्वरूपा श्री सायर मां के 93वें जन्मोत्सव के पावन अवसर पर मंदिर में सुबह 11:30 बजे महाआरती तथा दो लाख इक्यावन हजार मां सायर करणी माला जाप नाम स्मरण पठन, किया गया। इसके साथ ही माताजी का चिरजा गायन महोत्सव आयोजित किया गया। वृंदावन से आए कलाकारों द्वारा शानदार प्रस्तुतियां दी गई। इस अवसर पर सैकड़ों भक्तजन उपस्थित रहे तथा भक्तों ने मां के चरणों में शीश नवाकर मन्नतें मांगी। बगरु खुर्द जयपुर की भक्त मैना कंवर की मन्नत पूरी होने पर मां सायर के मंदिर में पेट पलायन करते हुए आई व मां सायर के चरणों में शीश नवाया। जन्मोत्सव पर दिनभर करणीकोट पर भक्तों का तांता लगा रहा। इस दौरान कार्यक्रम के बाद दोपहर में महाप्रसाद का आयोजन हुआ जिसमें भक्तों ने बड़े प्रेम से प्रसादी ग्रहण की। भक्तों ने बताया कि सायर मां अपने भक्तों की हर कामना पूर्ण करती हैं।

श्री सायर मां का परिचय

किनियां कुल की दसवीं पीढ़ी मे मातेश्वरी श्री

करणी मां का अवतार हुआ था एवं उसी किनियां कुल की चौबीसवीं पीढ़ी में भगवती श्री सायर मां का किनियां चारणवास (हुडील) में रतनदान किनियां के घर अवतार हुआ। इनकी माता का नाम चन्द्रकुंवर बीठू था। श्री सायर मां का अवतार वि.स. 1986 में मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी शनिवार को प्रातः 5 बजे हुआ। सायर मां अवतार समय के ग्रह नक्षत्र बहुत ही अलौकिक थे। इनके जन्म का नाम भी रिधु बाई आया। सायर मां को जगदम्बा श्री करणी मां का पूर्ण कला अवतार माना जाता हैं। सायर मां ने अवतार के समय तथा बचपन में कई अलौकिक परचे दिये जिस कारण सायर मां के प्रति जनमानस में आस्था व प्रसिद्धि चारों ओर बढ़ने लगी। दांतारामगढ़ कस्बे के पास पूर्व-पश्चिमी पहाड़ी पर एक गढ़ बना हुआ था। (जो कि अभिशप्त होने कारण सूना पडा हुआ था व मान्यता थी कि इसीलिए दांता ठाकुर की वंश वृद्धि रुकी हुई थी तथा पांच पीढी से दांता ठिकाने में वारिस गोद आ रहे थे) दांता ठाकुर मदन सिंह ने अपने गुरू परमहंस सन्त परमानंद बाबा से वंश वृद्धि हेतु निवेदन किया तो उन्होंने मदन सिंह को कहा कि अगर अपनी वंशवृद्धि चाहता है तो करणी मां के अवतार श्री सायर मां‌ को यह गढ़ भेंट कर दे। यदि सायर मां यहां पधारकर बिराजना स्वीकार करले तो आपकी सारी समस्या का समाधान हो जायेगा। ठाकुर मदनसिंह अपने साथ चारणवास सायर मां के दर्शनार्थ चले गये व वंश वृद्धि हेतु सायर मां का ईष्ट रखने के लिये प्रेरित किया तो सायर मां की कृपा से उनको पुत्र की प्राप्ति हुई। तब सायर मां को आभार स्वरूप गढ़ भेंट करने हेतु बार बार निवेदन किया तो सायर मां उनके विशेष अनुरोध को स्वीकार करके वि.स. 2008 माघ मास सुदी त्रयोदशी को सुबह गढ में पधारे तथा दूसरे दिन सायर मां ने स्वयं अपने करकमलों से श्री करणी मां के गढ़ की नीव लगायी तथा गढ़ का नाम श्री करणी कोट रखा एवं वि.स. 2009 की आश्विन नवरात्र की एकम को गढ़ में श्री करणी मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। माताजी ने अपना अधिकांश समय यही बिराज कर श्री करणी मां की आराधना की। सायर मां ने श्री करणी माता के परम थाम गडियाळा पधारकर वि. स. 2015 कार्तिक पूर्णिमा को अपने हाथों से श्री करणी मां के मंढ़ की नींव रखी। सायर मां अत्यंत सरल स्वभाव की थी। लोग उनको जय जय मां के नाम से भी सम्बोधित करते थे। सायर मां आजीवन ब्रह्मचारिणी रही एवं उनकी बहन व बहनोई शिवदान सिंह व मोहन कुंवर आजीवन माताजी की सेवा में रहे। माताजी ने उनके बहन के बेटे बलवीर सिंह को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया। विक्रम संवत 2062 मार्गशीर्ष सुदी तृतीया को सायर मां निज परमधाम पधारे। बलवीर सिंह ने विक्रम संवत् 2063 में सायर मां का भव्य मन्दिर बनाकर माघ सुदी त्रयोदशी शनिवार प्रातः शुभ मुहुर्त में श्री सायर मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की। जहां आज भी प्रतिवर्ष माघ सुदी त्रयोदशी को जागरण तथा चतुर्दशी व दोनों नवरात्रों का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। जहां देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु आते हैं।

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