सेवा और सद कार्यों में धन नहीं मन की आवश्यकता होती है यह उद्गार जगतगुरु राधा मोहन शरण देवाचार्य ने चौकड़ी का भवन में चल रही भागवत कथा के सातवें दिन व्यासपीठ से बोलते हुए कहे। उन्होंने कथा मे रुकमणी प्रसंग को विस्तार से बताते हुए कहा संसार में निष्काम भक्ति का सर्वोत्तम स्थान है। महाराज ने कहा कि भगवान की कृपा के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। कथा के प्रसंग को सजीव झांकियों के साथ बताया गया। कथा का समापन, हवन एवं भंडारा के साथ, सुदामा चरित्र, भागवत सार एवं व्यास पूजन के पश्चात होगा। इस अवसर पर गणमान्य लोगो के साथ अनेक स्त्री पुरुषो ने भागवत कथा का रसपान किया।