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तनाव- एक वो शब्द जो ना जाने कितने सुशांत को अशांत करके शांत कर चुका है

एक वो स्थिति जिसमे वो बिलकुल अकेला पङ जाता है

आइये जानते है कैसे मानसिक तनाव से बचा जा सकता है

संकलन -अंजनी कुमार स्वामी

डा. अंशु सिंह प्रिंसीपल

डा. अंशु सिंह प्रिंसीपल के अनुसार अवसाद क़ो कैसे कम किया जाए
अवसाद एक नकारात्मक मानसिक स्थिति है जिसमे कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं मानसिक स्थिति को पूर्ण रूप से नियंत्रित करने में असमर्थ रहता है और हमेशा ही विपरीत दिशा में सोचता है। आज के समय को देखते हुए यह एक बहुत ही गम्भीर मनोदशा है जिसके लिये ऐसे व्यक्ति को जिसमे यह नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो गया है उसको बहुत ही गंभीर तरीके से संभालना चहिये।इसके लिए परिवार, मित्रो सभी को बहुत ही समझदारी के साथ सकारात्मक रूप से सहयोग देना चाहिए।उस व्यक्ति को हमेशा उसकी अच्छाई की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जाना चाहिए जिससे वह अपने आप को किसी ना किसी रूप मे सकारात्मकता की ओर ले जाये और उसकी मांसिक स्थिति में सुधार हो। उस व्यक्ति की इस मनोदशा को उपहास मे नही लिया जाना चाहिए और एक साधारण बीमारी की ही तरह समझ कर उसकी सोच को कुछ सकारात्मक विचारों की तरफ मोड़ा जा सके। यह एक समस्या नही बल्कि एक समझदारी से सुलझाया जाने वाला प्रयास है।

कपिल सिंह ढाका

मैट्रिक्स कोचिंग संस्थान सीकर के निदेशक कपिल सिंह ढाका के अनुसार
मानसिक तनाव को संतुलित भोजन, पर्याप्त नींद, नियमित कसरत सकारात्मक ऊर्जावान लोगो तथा परिवार के साथ रहकर काफी हद तक दूर कर सकते है। इसके अलावा आप भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतन ना करके तथा कुछ फैसलों को ईश्वर पर छोङकर खुद को मजबूत बना सकते है।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद डाक्टर सुनील दुबे

डॉ. सुनील दुबे वर्तमान में भारत सरकार के विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी विभाग की राष्ट्रीय अकादमिक समिति में सदस्य हैं, प्रकृति संरक्षण हेतु घटित संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुषांगिक इकाई आईयूसीएन के पांच विश्व आयोगों में सदस्य हैं, इसके अलावा वे वन्यजीव एवं पारिस्थितिकीय विज्ञानी के रूप में स्वतंत्र सलाहकार के रूप में भी कार्यरत हैं। इनके अनुसार – अवसाद मुख्यतः दो तरह का होता है – एक तो बीमारी के रूप में, अर्थात अवसाद की बीमारी जिसमें व्यक्ति अपने अनुवांशिकी कारणों से अवसाद की मनःस्थिति में रहता है, उसके परिजनों (माता-पिता या उनके भी भाई-बहन इत्यादि में से कोई पूर्व में अवसाद से ग्रसित रहा हो और वही गुणधर्म अनुवांशिकीय वंशानुक्रम में उस व्यक्ति में आ गए); और दूसरी तरह का अवसाद है परिस्थितिजन्य जिसमें व्यक्ति के सामाजिक, पारिवारिक या स्वास्थ्य संबधित कारणों से व्यक्ति धीरे-धीरे अपने दिमाग की सक्रियता खो देता है. पहली तरह के अवसाद के लिए चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है लेकिन दूसरी तरह के अवसाद के लिए हमारी अपनी कोशिशें ही हमें उससे बचा सकती हैं। अवसाद से बचने के लिए जरुरी है की व्यक्ति अपने आप को सकारात्मक गतिविधियों और तन-मन को फायदा देने वाले कामों में सक्रिय रखे, जैसे रोजाना भरपूर नींद लेना, चौबीस घंटे की दैनिक दिनचर्या में समय पर सोना और समय पर जागना, व्यायाम-योग करना, ध्यान करना, अच्छा खाना खाना, औषधीय गुणों वाली वनस्पतियों को अपने नियमित आहार में शामिल करना, अपनी रूचि के काम करना जैसे बगीचे में पेड़-पौधों की सार-सम्हाल, खाना बनाना, संगीत का आनंद लेना, नाचना, खेलना, लिखना, चित्रकारी, फोटोग्राफी करना, इष्ट परिजनों मित्रों से मिलना, उनके साथ मनोविनोदपूर्वक समय बिताना, लम्बी ड्राइविंग पर निकल जाना, इत्यादि। हमारे समाज में ही अनेकों व्यक्तियों के ऐसे उदाहरण हैं जिनके जीवन में भीषण आपदाएं आयीं लेकिन उन्होंने अपने अंदर की सकारात्मकता को समाप्त नहीं होने दिया, आपदाओं के सामने समर्पण करने और जीवन भर अवसादग्रस्त रहने की बजाय उन्होंने सकारात्मक दृष्टिकोण को मजबूत रखते हुए उन आपदाओं से बाहर निकलने और सामान्य स्थिति के लिए संघर्ष करना बेहतर समझा। अवसाद से बचने के लिए प्रकृति के साथ संवाद बनाये रखना सबसे बेहतर तरीका है जिसमें व्यक्ति बाग-बगीचों की सैर, जंगलों की सैर, प्राकृतिक स्थानों का भ्रमण करे, साल में कुछ दिन प्राकृतिक स्थानों में वास करे. प्रकृति की विविधता को देखने, समझने और उसका आनंद लेने में कोई भी व्यक्ति इतना व्यस्त हो जाता है कि उसे अपने चारों ओर पूर्व में व्याप्त सामाजिक, पारिवारिक, व्यावसायिक इत्यादि नकारात्मक कारणों का विस्मरण (ध्यान) नहीं रहता और ऐसे कारणों का विस्मरण न रहने पर मानसिक और शारीरिक आनंद और आराम की जो अनुभूति होती है उसके फलस्वरूप व्यक्ति निश्चित रूप से अपने अंदर की नकारात्मकता और परिणत अवसाद से उबर सकता है.

To be continue

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