झुंझुनू, राज्य सरकार द्वारा लाए जाने वाले क़ानून स्वास्थ्य के अधिकार के बिल के विरोध में निजी अस्पतालों के द्वारा चलाया जा रहा असहयोग आंदोलन जिसमें सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का बहिष्कार शामिल है आज नौवें दिन भी जारी रहा। सयुँक्त संघर्ष समिति के सचिव डॉ कमल चंद सैनी ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा लाया जा रहा स्वास्थ्य का अधिकार बिल केवल नाम का बिल है जिसमें लोगों को पहले से उपलब्ध अधिकारों को नया नाम देकर गुमराह किया जा रहा है और वोटों की राजनीति खेली जा रही है जबकि वास्तव में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा सुधारा नहीं जा रहा है। सरकार निजी अस्पतालों को प्राधिकरण के नाम पर डरा धमका कर अपनी ज़िम्मेदारी निजी अस्पतालों के कंधे पर डाल रही है और ख़ुद वाहवाही लूटना चाहती है लेकिन निजी चिकित्सक सरकार के ये मंसूबे पूरे नहीं होने देंगे। इस बिल से जनता को भी कोई अतिरिक्त फ़ायदा नहीं होना है सिर्फ़ सरकारी अधिकारियों को निजी अस्पतालों को प्रताड़ित करने का एक और साधन मिल जाएगा और जनता को मिलने वाले इलाज में भी अड़चनें पैदा होंगी क्योंकि फ्री इलाज के चक्कर में अस्पताल इमरजेंसी में सिर्फ़ फर्स्ट ऐड देकर मरीज़ को रेफेर करने में रुचि रखेंगे और उनके फ्री इलाज का खर्च पैसे देकर इलाज करने वालों के खर्च में जुड़ेगा और इलाज और महँगा होगा। निजी क्षेत्र में नये लोग निवेश करने से हिचकेंगे और ना ही नई टेक्नोलॉजी वाला इलाज उपलब्ध होगा। सरकार द्वारा ये झूठ फैलाया जा रहा है कि ये बिल WHO और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार तैयार किया जा रहा है हम सरकार को चुनौती देते है कि वो एक भी ऐसा आदेश या गाइडलाइन जनता के सामने पेश कर दे जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार निजी क्षेत्र के द्वारा दिया जाना सुनिश्चित करता हो तो हम तुरंत आंदोलन वापस ले लेंगे लेकिन अगर सरकार अपनी झूठी वाहवाही और वोटों के चक्कर में हठधर्मिता पर अड़ी रहती है तो हमे सरकार के सामने आंदोलन को और तेज करना पड़ेगा।