आओ मिलकर खेले कोरोना योद्धा – योद्धा
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा
मोदी जी ने कहा आत्म निर्भर बनो तो ख्याल आया क्यों सम्मान के लिए भी आपस में आत्मनिर्भरता हासिल कर ली जाए
कही सम्मान लेने देने की लालसा की कीमत देश को न चुकानी पड़े
क्योकि ऐसे आयोजनों से आम जनता में सन्देश जा रहा है कि हम कोरोना की जंग जीत चुके है
आम आदमी सुरक्षात्मक उपायों की करने लगा है अनदेखी
झुंझुनू, कोरोना रूपी वैश्विक बीमारी ने दुनिया के सभी तौर-तरीकों में व्यापक बदलाव ला दिया है लोगों की लाइफ स्टाइल बदल रही है लेकिन बदला नहीं है तो यह की सम्मान प्राप्ति की लालसा। इसने तो इस वैश्विक महामारी को भी एक अवसर के रूप में ले लिया है। जी हां विभिन्न स्तर पर देखा जाए तो चाहे सामाजिक संगठन के कार्यकम हो या प्रशासनिक अधिकारियो के कार्यक्रम उनके अंदर एक विशेष प्रकार का ट्रेंड बन चुका है कि इस वैश्विक महामारी के दौरान अपने आपको कोरोना योद्धा बना कर दिखाने का। इसके लिए एक तरह से फ्रेंडली मैच भी खेला जा रहा है एक समिति के लोग दूसरे लोगों को सम्मानित करते हैं। वही कभी प्रशासन कुछ चंद गिने हुए लोगों को सम्मानित करता है और बदले में कुछ समय पश्चात या पहले वह प्रशासनिक अधिकारियों को कोरोना योद्धा का प्रमाण पत्र दे देते हैं। मजे की बात यह है कोरोना योद्धा का प्रमाण पत्र लेने के लिए ऐसी आपाधापी मची है कि अब कोई यह भी नहीं देखना चाहता कि कोरोना योद्धा का जो आपको सम्मान पत्र सौंपा जा रहा है वह देने वाला कौन है। कहने का तात्पर्य है कि हमें तो सम्मान से मतलब है चाहे वह किसी तिगड़म से मिले। वहीं प्रशासनिक क्षेत्रों में इन दिनों जो कोरोना को लेकर सम्मान समारोह आयोजित किए जा रहे हैं उनमें सिर्फ विसंगतियां ही देखने को मिल रही हैं। सरकारी मशीनरी कुछ गिने-चुने समाजसेवी लोगों को ही और कोरोना योद्धा बनाकर सम्मानित कर रही है। वहीं बदले में अन्य संगठनों के नाम से यही कथित समाजसेवी इन प्रशासनिक अधिकारियों को सम्मानित कर देते हैं। इस स्थिति में देखा जाए तो जो वास्तव में कोरोना योद्धा है वह हाशिए पर चला गया है। कहीं ना कहीं इस जूठी चमक-दमक और सम्मान प्राप्ति की लालसा के चलते वह गौण हो चुका है, और ऐसे लोगो को सम्मानित होता देख अब उसके सम्मानित होने की इच्छा भी मर चुकी है। एक कोरोना योद्धा जो अस्पताल में 24 घंटे में 18 से 20 घंटे ड्यूटी कर रहा है, मुंह पर मास्क लगाकर जिसके नाक की चमड़ी उखड़ चुकी है हाथों में दस्ताने पहनते पहनते और पीपीपी किट को संभालते संभालते उसका बुरा हाल हो चुका है, उसकी खैर खबर लेने वाला कोई नहीं है। और रही बात सम्मान की तो अभी कोरोना से हमने जंग जीती नहीं है अभी कोरोना अपने स्टैंड पर कायम है लॉक डाउन में मिल रही छूट या कहें कि अनलॉकिंग का जो पहला चरण शुरू हुआ है इसका कतई मतलब यह नहीं है कि कोरोना आपको बख्स देगा। कोरोना कभी भी कहीं भी अपनी चपेट में ले सकता है ऐसी स्थिति में किस चीज का सम्मान, किस चीज के समारोह ? वही इन सम्मान समारोहों को देखकर आम लोगो में एक गलत मैसेज जा रहा है कि कोरोना से हम जीत चुके है इससे अब कोई खतरा नहीं। लिहाजा प्रशासनिक स्तर पर ऐसे समारोह आयोजित करने वाले लोग जनता को भ्रमित कर रहे है। अभी तक सरकार ने लोगो को कोरोना के खतरे से अवगत करवाने के लिए पूरी अर्थ व्यवस्था को दाव पर लगा दिया था ताकि हमारे लोग सलामत रहे परन्तु ये सम्मान प्राप्ति और प्रदान करने की दूकान चलाने वाले लोग सब किये धरे पर पानी फेर कर छोड़ेगे। समय रहते ऐसे लोगो पर सरकार को लगाम लगाने की आवश्यकता है।