उदयपुरवाटी में धुँ-धुँ कर जला रावण व उनकी सेना
लंकेश पर बरसाई गोलियां हुआ दशानन की सेना का खात्मा
उदयपुरवाटी. कस्बे में विजयादशमी पर जिसे दशहरा भी कहा जाता है। इस त्यौहार को पूरे देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू रीति रिवाज के अनुसार हर वर्ष शारदीय नवरात्रि के समापन के अगले ही दिन विजयदशमी का त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें दशानन व उनकी सेना पर गोलियां बरसाई जाती हैं। जानकारी के अनुसार दादू पंथी समाज के इस दशहरा महोत्सव में रावण की सेना भी देखने लायक होती है। यहां मिट्टी से बने असंख्य मटके रखे जाते हैं। उदयपुरवाटी कस्बा का रावण दहन प्रदेशभर का अनूठा दहन होता है। यह दशहरे के दिन रावण के पुतले के साथ उसकी सेना पर बंदूकों से अंधाधुंध गोलियां बरसाई जाती हैं। पहले सेना का खात्मा किया जाता है। फिर अंत में मशाल बांण से रावण के पुतले को जलाया जाता है। दशहरा उत्सव संयोजक घनश्याम स्वामी ने बताया कि नवरात्रि स्थापना के साथ ही दादू पंथियों का दशहरा उत्सव शुरू हो जाता है। जमात स्कूल में स्थित बालाजी के मंदिर में ध्वज फहराकर महोत्सव की शुरुआत की जाती है। नौ दिन तक चलने वाले दशहरा उत्सव में विभिन्न आयोजन होते हैं। दादू मंदिर में दादू वाणी के अखंड पाठ होते हैं। शस्त्र पूजन, कथा प्रवचन के साथ ही विजय पताका फहराने के लिए रणभेरी, नौबत, ढोल, ताशा झांझ बजने शुरू हो जाते हैं। दशहरा उत्सव के दौरान प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती व दादूवाणी के पाठ, चांदमारी की रस्म, श्री दादू मंदिर एवं बालाजी मंदिर में विशेष आरती होती रहती है। नवरात्रि के पहले दिन परंपरागत तरीके से चांदमारी क्षेत्र में बंदूकों से रिहर्सल की जाती है। रावण दहन से पहले बंदूकों से गोलियां बरसाने की दादू पंथी समाज की यह परंपरा करीब 127 वर्ष पुरानी चली आ रही है। जमात क्षेत्र में बसे दादू पंथी समाज के लोगों द्वारा आज भी यह परम्परा बराबर निभाई जाती है। जिसमें स्थानीय नगर पालिका भी सहयोग करती है। दशहरा महोत्सव पर आसपास के गांवों से भी हजारों लोग एकत्रित होते हैं।
अखाड़े में विशेष
जानकारी के अनुसार दातारामगढ़ से आकर उदयपुरवाटी के जमात में बसे थे दादूपंथी पांचो अखाड़ो के थामायत व मंत्री के अनुसार जयपुर के महाराजा मानसिंह ने दादू पंथियों को सात जमात में बांटा गया था। सबसे बड़ी जमात को उदयपुरवाटी में बसाया गया था। यहां पर काफी सालों से दशहरा उत्सव मनाया जाता रहा है। बाकी छः जमात भी प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में इस परंपरा का निर्वहन करती हैं। देश भर में रावण दहन की परंपरा है लेकिन झुंझुनू-नीमकाथाना जिले के उदयपुरवाटी कस्बे में रावण के अंत की अनोखी परंपरा रही है।