झुंझुनू विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की टिकट के आशार्थी को वक्त ने दिखाया आईना
व्यंग्य – आज रविवार को नारियल पर आई राजनीति की बूझा
झुंझुनू, आपने सुपरहिट फिल्म हीरो का वह गाना तो सुना होगा प्यार वह करते हैं जिनकी जागीर होती है। परिस्थितियां बदली तो प्यार के लिए जागीर होना तो आज के समय में जरूरी नहीं है लेकिन राजनीति में अपने आप को स्थापित करने के लिए पैसों के मामले में जागीरदार होना जरूरी है हो गया है। झुंझुनू जिला मुख्यालय के एक नौजवान ने जोड़-तोड़ करके भाजपा पार्टी में तो अपनी बनाली और फिर धीरे-धीरे तिकड़म बाजी करते करते झुंझुनू विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट का अपने आप को प्रबल दावेदार बताने लगे। आखिर अपने मुँह मिठू मियां बनने में बुराई भी क्या है ? पार्टी के सहारे सहारे सामाजिक संगठन में भी जगह बना ली लेकिन इस तिकड़म बाजी से तिकड़म बाजी से जो कुछ कमाया था वह भी लगभग सब गवा दिया। जिसके चलते खुद को ही लगने लगा भाजपा की टिकट मिलना तो दूर की बात अब सपने देखना भी शायद मुमकिन साबित नहीं होगा। और दूसरे जो भाजपा की टिकट चाहने वाले लोगो द्वारा कार्यकर्मो में किये जाने वाले खर्चे को देखा तो भी अक्कल ठिकाने आ गई। लिहाजा चुनावों से काफी समय पहले ही अपने हथियार डालते हुए क्यों न किसी दूसरे प्रबल दावेदार के शरणागत हो जाएं यानी एहसास हो गया कि भाजपा की टिकट तो मिली नहीं यानी बींद नहीं बन पाए तो क्यों नहीं बिंदायक बन कर ही काम चला लूं। जिसके चलते खर्चा पानी तो चलता रहेगा और कुर्ते पाजामे की क्रीज भी कायम रह जाएगी । बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए आजकल यह टिकट के प्रबल दावेदारी की बात छोड़ कर ज्यादातर कार्यक्रमों में बिंदायक की भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे हैं और सोच रहे हैं कि बिंदायक भी तो कभी आगे जाकर बींद बनता है। लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है। इसी बीच पहले की किए हुए कर्म आडे आ गए और और वैधानिक कार्रवाई की तलवार भी कई मामलों को लेकर सिर पर लटकने लगी। लिहाजा आजकल बिंदायक जी काफी परेशानी में चल रहे हैं। सभी सामाजिक कार्यक्रमों में जो अकेले ही बींद हुआ करते थे आज वह कार्यक्रमों में बिंदायक की भूमिका में ही नजर आते हैं। हाल ही में प्रदेशाध्यक्ष के सामने एक्सपोज़ होने मामले में बाल-बाल क्या बचे उसी दिन सालासर बालाजी वाले बाबा के धोक लगाने भी पहुंच गए। लेकिन बाबा के दरबार में बैठे हुए ही ऐसा समाचार देखने को मिल गया जिससे चिंता की लकीरें माथे पर फिर से खींचने लगी कि खतरा तो टलने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है और खतरा बढे भी क्यों नहीं विधि का विधान है कि कर्मों का फल भोगना तो पड़ेगा ही आज नहीं तो कल।