बस 4 जून को तो यह सिर्फ हुई थी रिलीज
झुंझुनू, राजस्थान में 25 सीटों पर जीत की हैट्रिक बनाना भारतीय जनता पार्टी का सपना आखिर दूर की कौड़ी ही साबित हुआ। राजनीतिक विश्लेषण से ऊपर उठकर जनता ने विपक्ष की झोली में सीटे डाल दी और बात झुंझुनू लोक सभा क्षेत्र की करें तो झुंझुनू जिले की जनता यहां से भाजपा के हार की पटकथा चुनाव से पूर्व ही अपने मन में रच चुकी थी महज 4 जून को तो यह रिलीज हुई थी। दरअसल आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के लिए जितनी भी प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई उसमें बीजेपी का कोई भी पदाधिकारी पिछले 10 साल में भाजपा सांसदों द्वारा किए गए कामों की कोई बड़ी उपलब्धि तक पत्रकारों के सामने रखने में नाकाम साबित हुआ। बल्कि कई बार तो मौके ऐसे आए कि उनके प्रवक्ताओं ने उल्टे पत्रकारों से ही सवाल कर लिए कि चार-चार बार विधायक बनने वालों से आप सवाल क्यों नहीं पूछते। सीधी सी बात है कि पिछले 10 साल में झुंझुनू के सांसद झुंझुनू को कोई बड़ी सौगात नहीं दे सके लिहाजा उनके पास बताने के लिए कुछ था ही नहीं। यहां तक की पुलिस लाइन के पास अधूरे रेलवे ओवर ब्रिज के वर्षों से खड़े हुए पिल्लर भी अब झुंझुनू की जनता की तरफ मुँह चिढाने लगे हैं। वहीं लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा के जिला कार्यालय में हुई प्रेस वार्ता की करें तो इस प्रेस वार्ता में पत्रकारों के तीखे सवालों का जवाब भाजपा के तेजतर्रार प्रवक्ता के के जानू भी नहीं दे पाए। चाहे मामला मोड़ा पहाड़ का हो या फिर कथित भ्र्ष्ट अधिकारियो के संरक्षण का हो। उनके साथ प्रेस वार्ता में मौजूद भाजपा के जिले के पदाधिकारी भी निरुत्तर ही साबित हुए। दरअसल आपको बता दे की पत्रकारों ने सवाल किया था कि कांग्रेस सरकार के समय आपने झुंझुनू जिले के कुछ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगाते हुए मोर्चा खोला था धरने प्रदर्शन किए थे बीजेपी की सरकार बनने के उपरांत बाद वापस कैसे उनको उन्ही पदों पर लगा दिया गया। इस सीधे सवाल का उत्तर भाजपा के नेता नहीं दे पाए। सही मायने में तो जवाब उन्हें पता था कि इन चंद अधिकारियों को जिले में लाने वाले भाजपा के लोग ही हैं। लिहाजा इस दौरान भी काफी गर्मागर्मी से पत्रकारों के सवाल उछलते रहे लेकिन जवाब नहीं देते बना किसी भी भाजपा नेता से। मुश्किल से भाजपा नेता बबलू चौधरी ने माइक हाथ में लेते हुए पत्रकारों को कुछ संतुष्ट करने का प्रयास किया। लेकिन इसके बाद सीधा-सीधा जवाब नहीं मिलने पर अंतत पत्रकारों ने भी आपस में काना फुसी करते हुए भी देखा गया कि समझौता हो गया है। सवाल बड़ा है कि कांग्रेस सरकार में जिन समस्याओं को लेकर, जिन अधिकारियों की कार्य शैली के चलते झुंझुनू की जनता परेशान थी भाजपा की सरकार आते ही उनको फिर से झुंझुनू में पदासीन कर दिया गया। अब सवाल तो उठेगा ही कि भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए भाजपा ने पूरे 5 साल जिन अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोला आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी या क्या जरूरत थी कि फिर से भाजपा की सरकार आने पर उनको जिले में वापस से पदों पर आसीन कर दिया गया। भले ही भाजपा के नेता जवाब देने से बचते रहे हो लेकिन झुंझुनू की जनता ने 19 अप्रैल को अपना जवाब ईवीएम का बटन दबा कर दे दिया जिसका नतीजा आप सभी के सामने 4 जून को आया।
वहीं हम बता दे कि लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के प्रति कोई नाराजगी नहीं थी लेकिन स्थानीय मुद्दे और स्थानीय कारणों के चलते ही परिणाम कुछ अलग देखने को मिला। वही एक बार अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था कि भाजपा का पुराना कार्यकर्ता नहीं टूटना चाहिए चाहे नए 10 कार्यकर्ता पीछे छूट जाए लेकिन ऐसी बातों को दरकिनार किया गया और भाजपा ने अपनी वाशिंग मशीन के भरोसे ऐसे नेताओ और कार्यकर्ताओ के लिए भी दरवाजे खोल दिए जो जन्मजात भाजपा से जुड़े लोगो को नागवार गुजरे। यदि आप लोकसभा चुनाव के विधानसभा वार या उससे भी नीचे स्तर पर आंकड़ों की छानबीन करेंगे तो आपके सामने चौंकाने वाले आंकड़ों की तस्वीर सामने आएगी जो सीधा-सीधा इशारा करती है कि भाजपा की कुछ बड़ी समर्थक जातियों का वोट बैक अचानक से गुपचुप तरीके से खिसक कर कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र ओला की तरफ खिसक गया और सारा का सारा खेल धारा का धरा रह गया। स्थानीय जनता की समस्याएं, स्थानीय मुद्दे, स्थानीय कारण और स्थानीय नेताओं के कारण ही भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र की सीट हारनी पड़ी। यदि समय रहते भाजपा अभी भी नहीं चेती तो आगामी समय में आने वाले विधानसभा उपचुनाव, नगर निकाय चुनाव और ग्राम पंचायत के चुनाव के साथ-साथ बात उससे भी आगे तक भाजपा के हाथ से निकल जाएगी। शेखावाटी लाइव ब्यूरो रिपोर्ट झुंझुनू