प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में विवाहित महिलाओं के साथ हो रहा सौतेला व्यवहार
निदेशालय की जिद्द के आगे कोर्ट निर्णय व कार्मिक विभाग के नियम भी हो रहे बेकार
रीट भर्ती 2021 (लेवल-1) से जुड़ा मामला
सादुलपुर, चूरू जैसे प्रदेश के अनेक सीमावर्ती जिलों में नजदीकी हरियाणा राज्य से यहां विवाहित सैकड़ों महिलाएं पिछले पांच वर्ष से जन्मस्थान के आधार पर आरक्षण के हक से वँचित हैं | प्रशासनिक उपेक्षा के कारण विवाह पश्चात यहां की स्थायी निवासी होने के बाद भी ये महिलाएं प्रवासी नागरिक जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं | आरक्षित एससी,एसटी,ओबीसी महिलाओं को आरक्षण के मामला जहाँ आज भी कोर्ट में विचाराधीन है वहीं ईडब्लूएस श्रेणी की महिलाओं को हाईकोर्ट ने आरक्षण का हकदार मानते हुए इन्हें सरकारी नौकरी में आरक्षण देते हुए नियुक्ति के आदेश दे दिए हैं | लम्बी कानूनी लड़ाई व विभागीय टिका-टिप्पणी के बाद आखिरकार कार्मिक विभाग राजस्थान सरकार ने भी इन्हें आरक्षण का हकदार तो मान लिया है | लेकिन सरकार की विभिन्न भर्ती एजेंसियाँ व नियुक्ति विभाग आज भी इन आदेशों को मानने को तैयार नहीं हैं | विभागों की मनमर्जी का आलम यह है कि रीट भर्ती 2021 लेवल-एक में राजगढ़ (सादुलपुर) तहसील की दो महिला अभ्यर्थी पूजा रानी व अमन कुमारी पिछले दो वर्ष से नियुक्ति से वँचित हैं | इनकी नियुक्ति की फाइल को निदेशालय के अधिकारी दबाकर बैठ गए हैं | बार-बार लिखित निवेदन के बावजूद तथा हाईकोर्ट,चीफ सेक्रेटरी व शिक्षा सचिवालय के स्पष्ट आदेश के बाद भी निदेशालय की भेदभावपूर्ण नीयत इन महिलाओं की नियुक्ति में बड़ी बाधा बनी हुई है |
- विधायक न्याँगली ने सीएम को लिखा पत्र : हरियाणा से सादुलपुर जैसे सीमावर्ती क्षेत्र में विवाहित महिलाओं को आरक्षण की निरंतर मांग उठा रहे विधायक मनोज न्याँगली ने इन दोनों पीड़ित महिलाओं को नियुक्ति हेतु सूबे के सीएम को पत्र लिखा है | विधायक की शपथ के बाद प्रथम पत्र जारी करते हुए विधायक ने उक्त मामले में त्वरित कार्यवाही की मांग की है |
- क्या कहता है कानून: इन महिलाओं को आरक्षण के लिए निरंतर कानूनी लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट हरदीपसिंह सुंदरिया के मुताबिक संविधान की आर्टिकल 16 जन्मस्थान अथवा लिंग के आधार पर राज्य को नौकरी में भेदभाव की इजाजत नहीं देती है | ये महिलाएं विवाह के आधार पर राजस्थान की स्थायी निवासी हैं न कि अस्थायी प्रवासी नागरिक | जन्म स्थान के आधार पर विवाहित महिलाओं को उनके हक से वँचित करना बेहद चिंतनीय है | जनरल कोटे में ईडब्लूएस के आरक्षण नहीं देना तो कानून के गला घोटने के समान है |
- मामले में निरंतर सक्रिय वेदपाल धानोठी के अनुसार पांच वर्ष के मैराथन संघर्ष से उक्त मामले में महत्वपूर्ण सकारात्मक मोड़ आया है | लेकिन भर्ती एजेंसियाँ सच्चाई स्वीकार करने की बजाय इन महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रुख अपनाए हुए हैं | निदेशालय तो कार्मिक विभाग के ओपिनियन को भी दरकिनार कर वर्तमान में जारी रीट भर्ती में भी इन महिलाओं को नियुक्ति से बाहर रखने के संवेदनहीन दिशा निर्देश जारी कर चुका है | एजेंसी को दिशा-निर्देशों में संशोधन करके इन महिलाओं के हित में ऐतिहासिक पहल करनी ही होगी |
- “हम पांच बार निदेशालय के चक्कर लगा चुकी हैं,गत अक्टूबर माह में चीफ सेक्रेटरी महोदया को भी लिखित दी गई थी | निदेशालय के नियुक्ति प्रकोष्ठ द्वारा हमें बोला जाता है कि यदि आप दो महिलाओं को नियुक्ति दे दी गई तो यह भविष्य में सभी महिलाओं के लिए नजीर बन जाएगी” – पूजा रानी ढूकिया (अभ्यर्थी,सादुलपुर)