झुंझुनू, लायन्स क्लब झुंझुनूं द्वारा 18 जुलाई प्रात:8 बजे शहीद हवलदार मेजर पीरू सिंह की 75 वीं पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि कार्यक्रम पीरु सिंह सर्किल स्थित पीरुसिंह स्मारक पर आयोजित किया जावेगा। जानकारी देते हुए लायन्स क्लब झुंझुनूं के अध्यक्ष लॉयन अमरनाथ जांगिड़, सचिव भागीरथ प्रसाद जांगिड़ एवं कोषाध्यक्ष लॉयन शिवकुमार जांगिड़ ने बताया कि 18 जुलाई प्रात: 8 बजे आयोजित कार्यक्रम में शहीद हवलदार मेजर पीरू सिंह को दो मिनट का मौन रखकर पुष्पांजली अर्पित कर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी जावेगी।
इस अवसर पर कार्यक्रम में पधारने के लिए जिला कलेक्टर, जिला पुलिस अधीक्षक, अतिरिक्त जिला कलेक्टर, एसडीएम, मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद, सभापति नगर परिषद, यातायात प्रभारी, थाना अधिकारी कोतवाली झुंझुनूं एवं जिला सैनिक कल्याण बोर्ड सहित अन्य अधिकारियों को लायन्स क्लब झुंझुनूं की और से आमंत्रित किया गया है। आमंत्रित अतिथि गण की गरिमामय उपस्थिती में आयोजित कार्यक्रम में भूतपूर्व सैनिकों एवं लायन्स क्लब झुंझुनूं के सदस्यों के सानिध्य में शहीद हवलदार मेजर पीरू सिंह को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी जावेगी।
कार्यक्रम के पश्चात प्रातः 9 बजे शहीद पीरू सिंह राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में जरूरतमंद विद्यार्थियों को स्कूल बैग एवं स्टेशनरी जिसमें कॉपी, पेन, पेंसिल एवं रबड़ इत्यादि का वितरण कार्यक्रम प्रायोजक एवं संयोजक डा.उम्मेद सिंह शेखावत के संयोजकत्व में होगा। क्लब पीआरओ डॉ.डी.एन.तुलस्यान ने बताया कि पीरुसिंह स्मारक पर साफ सफाई का कार्य करवाया गया है। विदित है कि लायन्स क्लब द्वारा विगत 27 वर्षों से मेजर पीरू सिंह की 18 जुलाई पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन लगातार किया जाता रहा है।
कार्यक्रम प्रायोजक एवं संयोजक डॉ.उम्मेद सिंह शेखावत ने बताया कि अपनी प्रचंड वीरता, कर्तव्य के प्रति निष्ठा और प्रेरणादायी कार्य के लिए कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह भारत के युद्ध काल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किए गए जो कि हमारे लिए गौरव की बात है। अपनी विलक्षण वीरता के बदले शहीद हवलदार मेजर पीरू सिंह ने अपने अन्य साथियों के समक्ष अपनी एकाकी वीरता, दृढ़ता व मजबूती का अप्रतिम उदाहरण प्रस्तुत किया जो कि काबिले तारीफ है। राजस्थान में झुंझुनू जिले के बेरी नामक छोटे से गांव में 20 मई 1918 में ठाकुर लाल सिंह के घर जन्मे पीरू सिंह चार भाइयों में सबसे छोटे थे तथा राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की डी कंपनी में हवलदार मेजर थे। मई 1948 में छठी राजपूत बटालियन ने उरी और टिथवाल क्षेत्र में झेलम नदी के दक्षिण में पीरखण्डी और लेडी गली जैसी प्रमुख पहाडिय़ों पर कब्जा करने में विशेष योगदान दिया। इन सभी कार्यवाहियों के दौरान पीरू सिंह ने अद्भुत नेतृत्व और साहस का परिचय दिया। जुलाई 1948 के दूसरे सप्ताह में जब दुश्मन का दबाव टिथवाल क्षेत्र में बढऩे लगा तो छठी बटालियन को उरी क्षेत्र से टिथवाल क्षेत्र में भेजा गया। टिथवाल क्षेत्र की सुरक्षा का मुख्य केन्द्र दक्षिण में 9 किलोमीटर पर रिछमार गली था जहां की सुरक्षा को निरंतर खतरा बढ़ता जा रहा था। अत: टिथवाल पहुंचते ही राजपूताना राइफल्स को दारा पहाड़ी पहाड़ी की बन्नेवाल दारारिज पर से दुश्मन को हटाने का आदेश दिया गया था। यह स्थान पूर्णत: सुरक्षित था और ऊंची-ऊंची चट्टानों के कारण यहां तक पहुंचना कठिन था। जगह तंग होने से काफी कम संख्या में जवानों को यह कार्य सौंपा गया। 18 जुलाई को छठी राइफल्स ने सुबह हमला किया जिसका नेतृत्व हवलदार मेजर पीरू सिंह कर रहे थे। पीरू सिंह की प्लाटून जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई, उस पर दुश्मन की दोनों तरफ से लगातार गोलियां बरस रही थीं। अपनी प्लाटून के आधे से अधिक साथियों के मारे जाने पर भी पीरू सिंह ने हिम्मत नहीं हारी। वे लगातार अपने साथियों को आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित करते रहे एवं स्वयं अपने प्राणों की परवाह न कर आगे बढ़ते रहे तथा अन्त में उस स्थान पर पहुंच गये जहां मशीन गन से गोले बरसाये जा रहे थे। उन्होंने अपनी स्टेनगन से दुश्मन के सभी सैनिकों को भून दिया जिससे दुश्मन के गोले बरसने बन्द हो गये। जब पीरू सिंह को यह एहसास हुआ कि उनके सभी साथी मारे गये तो वे अकेले ही आगे बढ़ चले। रक्त से लहूलुहान पीरू सिंह अपने हथगोलों से दुश्मन का सफाया कर रहे थे। इतने में दुश्मन की एक गोली आकर उनके माथे पर लगी और गिरते-गिरते भी उन्होंने दुश्मन की दो खंदक नष्ट कर दीं। अपनी जान पर खेलकर पीरू सिंह ने जिस अपूर्व वीरता एवं कर्तव्य परायणता का परिचय दिया वह भारतीय सेना के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है। देश हित में पीरू सिंह ने अपनी विलक्षण वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने अन्य साथियों के समक्ष अपनी वीरता, दृढ़ता व मजबूती का उदाहरण प्रस्तुत किया। इस कारनामे को विश्व के अब तक के सबसे साहसिक कारनामों में से एक माना जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने उस समय उनकी माता श्रीमती जडाव कंवर को लिखे पत्र में लिखा था कि देश कम्पनी हवलदार मेजर पीरू सिंह का मातृभूमि की सेवा में किए गए उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ है।